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________________ [ ३८ ] समझना aff कर्मका बंध होता है एवं नरकादि २ इसी ग्राफक बहुवचनापेक्षा नी राग द्वेषसे कर्म चन्धता है नरकादि २५ में एक एन २५ बल और बहुवचन २५ वो कुल ५० घोल इतने अनावरणीयके हुए। इसी माफक दर्शनावणी आदि कर्म १९६ बल लगाने वा ४०० बोल हुवे । एक जीव ज्ञानावर्णीय कर्मवेदे ! कोई वेदे कोई नहीं वेदे ( केवली ) और नरकादि २३ दंडक नियमा वदे. मनुष्य कोई वेदे कोई नहीं रे (केवली) एवं २९ बोल बहु वचनका भी समझना एवं दर्शना वर्णिय मोहनिय तथा अन्तराय और वेदनिय, आयुष्य, नाम, गोत्र इन चार कर्मो का एक वचन या बहुवचनापेक्षा सब जीव निश्चय वेदे एवं ८ कर्मोके ४०० भांगे होते हैं. अनुभाग द्वारा - हे भगवान ! जीव ज्ञानावर्णिय कर्म बान्धे रागद्वेषसे स्पर्श. आत्मा प्रदेशोंके साथ. विशेष कर बांधे और स्पर्श किये ज्ञानावर्णिय कर्मका संचय किये चितके एकत्र किये, ज्ञानावर्णिय कर्म उदय आने योग्य हुवे. विपाक प्राप्त हुवे. कलदेनेके सन्मुख हुवे. यहां भावार्थ यह है के जीवके कर्मो प्रेरक कोन है ? निश्चय नयसे जीव कर्मोका आकती है. कमका कर्ता कर्म ही है परन्तु यहां पर व्यवहार नयकी अपेक्षासे उत्तर देते हैं जीवने ही कर्म किया है. ( रागद्वेपसे) यावत् जीवने ही कर्म उदय निप्पन्न किये हैं. जीवने ही भोग रस पर्ने प्रणमाये हैं. जीवने ही उनको उदीर्णा की है. अन्य जीव होती है. वह अन्य जीव ही करते हैं. भी कर्मे की उदीर्णी कमका उदय उदीर्णासे
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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