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________________ ( ९ ) . (२) भवो उत्पन्न गति--नरकादि चार गतिमें उत्पन्न होष (३) नो भव उत्पन्न गति - पुद्गलोंका चय उपचय त सिद्ध भगवान् सिद्धक्षेत्रमें उत्पन्न होते हैं वह भी नो भव उत्पन गति है । जिसमें पुद्गल नोभव उत्पन्न गतिके अनेक भेद है। लोकके पूर्वका चरमान्तसे परमाणु एक समय में लोकके पश्चिम के चरमान्तमें गति करता है एवं दक्षिण उत्तर उर्ध्व अधोलोक में उत्पन्न करता है और सिद्धों के दो भेद है (१) अणंतर सिद्ध जिसके १५ भेद हैं (१) परम्पर सिद्ध जिसके अनेक भेद हैं. (४) विहायगति - जिसके १७ भेद है. (१) फूलमाण गति - एक दूसरेको स्पर्श करता हुवा जावे जैसे परमाणुवादि अनन्तप्रदेशी स्कंध परमाणुवादिको स्पर्श करता हुवा गति करे. (२) आफूसमाण गति - प्रथमसे विपरीत अस्पर्श करते हुके गति करे. (३) उवसंपन्नमण गति - जैसे राजा, युवराज, सेठ, सेनापति आदिको अंगीकार कर गति करे अर्थात् अपने पर मालक करके गति करे 1 (४) अणुवसंपज्जमणागति - किसीका भी आश्रय न लेवे जैसे चक्रवर्तादि | (५) पोगल गति - जैसे परमाणु यावत् अनन्त प्रदेशी पुगलोकी गति है । (६) मंडूयागति - जैसे मेडक कुदते हुवे चलते है वैसी गति ।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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