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________________ यथा-मोतेन्द्रिय, चतू इन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसेन्द्रिय, स्पशेन्द्रिय बेस द्रव्येन्द्रियां ८ को २४ दंडक पर च्यार द्वार करके सम. हर गई हैं इसी माफक भाव इन्द्रियां ५ हैं उसको २४ वंडक पर उपरवत् च्यार २ द्वार समझना चाहिये. यदि द्रव्यन्द्रिय कंठस हो जायगी तब भावइंद्रियका उपयोग सहजमें हो नायगा. इस लिये यहांपर इसका विवरण नहीं किया इति । सेवं भंते सेवं भंते तमेव सचम् । थोकडा न० १५१ श्रीपन्नवणासूत्र पद १६ ... (प्रयोगपद) जिसका चनन स्वभाव है उसको प्रयोग कहते हैं, वे प्रयोग दो प्रकारके हैं (१) शुभ (२) अशुभ. दोनों प्रकारकी क्रिया मदद करते हैं प्रयोगकी प्रेरणा प्रथमसे तेरहवां गुणस्थान तक है जिसमें प्रथमसे दशमें गुणस्थान तक प्रयोगके साथ कषायका संयोग. होनेसे संपरायकी क्रिया लगती हैं और ११-१२-१॥ गुपस्थानमें प्रयोगके साथ कषायका संयोग नहीं हैं अर्थात् वहां अकषायी है वास्ते इविहीकी क्रिया लगती है. इस लिये प्रथम प्रयोगके स्वरूप को खूब दीर्घदृष्टीसे समझना जरूरी है। . हे भगवान् ! प्रयोग कितने प्रकार है। भयोग १५ प्रकारके है पथा (१) सबमयोग,
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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