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________________ इन द्वादशांगीको भूतकाळमें अनंतेजीवों विराधना करके चतुर्गति संसारके अंदर परिभ्रमण कीया. वर्तमान कालमें संख्याते जीव परिभ्रमण करते है. और भविष्य कालमें अनतेजीव परिभ्रमण करेगें. इन द्वादशांगीकी भूतकालमें अनंतेजीवों आराधना करके संसाररूपी समुद्रको पार पहोंचे (मोक्ष गये ) और वर्तमान कालो संख्याते जीव मोक्ष जाते है ( महाविदेह अपेक्षा ) और भविष्यमें बादशांगीको आराधन करके अनंते जीव मोक्ष जावेगे. यह बादशांगी भूतकालमें थी, वर्तमान कालमें है और भविष्य कालमें रहेगी. जैसे पंचास्तिकायकी माफिक निश्चल नित्य, शाश्वती. अक्षय, अव्याबाध, अवस्थित रहेगी. श्रुतज्ञानका संक्षेपसे चारभेद हे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव. (१) द्रव्यसे उपयोग युक्त श्रुतज्ञान सर्व द्रव्यकों जाने देखे. (२) क्षेत्रसे उपयोग सहित श्रुतज्ञान सर्व क्षेत्रकों जाने देखे. (३) कालसे उपयोग सहित श्रुतज्ञान सर्व कालको आने देखे. (४) भावसे उपयोग सहित श्रुतज्ञान सर्व भावकों जाने देखे. चौदा प्रकारके श्रुतिज्ञानके अन्त में सूत्रका व्याख्या करनेकी पद्धति बतलाइ है. व्याख्यानदाताओंको प्रथम मूल सूत्र कहना चाहिये. तदान्तर मूल सूत्रका शब्दार्थ. तदान्तर नियुक्ति, तदा. न्तर विषय विस्तारसे प्रतिपादनार्थ, टीका, चूर्णी, भाष्य तथा हेतु टान्त युक्ति द्वारा स्पष्टिकरण करना यह व्याख्यानकी पद्धति है। . . इति श्रुतज्ञान. इति परोक्षज्ञान. . सेवभंते सेवभंते तमेव सच्चम.
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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