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________________ कहा है कि जीयों के आठ रूचक प्रदेश सदैव निर्मल रहते है। वहां कर्मदल नहीं लगते है यह ही चैतम्यका चैतन्यपणा है जैसे . आकाश में चन्द्र सूर्य कि प्रभा प्रकाश करती है कदाच उस कों महामेघ-बादले उस प्रभा के प्रकाश को झांकासा बना देते है तयपि उस प्रकाश को मूलसे नष्ट नही कर सकते है बादल दर होने से वह प्रभा अपना संपुरण प्रकाश कर सक्ती है इसी माफीक जीवके चैतन्यरूप प्रभा का प्रकाश को कर्मरूप बदल झांकासा बना देते है तद्यपि चैतन्यता नष्ट नही होती है कर्म दल दुर होने से वह ही प्रभा अपना संपुरण प्रकाश को प्रकाशित कर सकती है। (११) गमिक श्रुतिज्ञान-दृष्टिबादादि अंगमे एकसे अलावे अर्थात् सदृश सदृश वातें आति हो उसे गमिक श्रुतिज्ञान कहते है। (१२) अगमिक श्रुतिज्ञान-अंग उपांगादि में भिन्न भिन्न विषयोपर अलग अलग प्रबन्ध हो उसे अगमिक श्रुतिज्ञान कहते है जैसे ज्ञातासूत्रमे पचवीस कोड कथावों थी जिस्मे साढा एकवीस क्रोड तो गमिक कथावों जो कि उस्मे ग्राम नाम कार्य संबन्ध एकासाही था ओर साढातीन क्रोड कथावो अगमिक थी इसी माफीक और आगमोमें भी तथा दृष्टिवादांगमें भी समजना. (१३ ) अंग श्रुतिज्ञान-जिस्मे द्वादशांगसूत्र ज्ञान है (१४) अनांग श्रुतिज्ञान-जिस्के दो भेद है (१) आवश्यक सूत्र ( २ ) आवश्यकसूत्र वितिरिक्तसूत्र जिस्मे आवश्यकसूत्र के छे अध्ययन रूप छे विभाग है यथा. सामायिक, चउवीसत्थ, वन्दना, पडिक्कमण, काउसग्ग, पञ्चखांण और आवश्यक वितिरिक्त सूत्रोंके दो भेद है एककालिकसूत्र जो लिखते समय पहले या चरम पेहर में समाप्त किये गये थे. दुसरे उत्कालिक जो दुसरी तीसरी पेहः रमें समाप्त कीये गये थे.
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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