SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२ १५ पद्विवाले जीव जावे यथा (१४ पूर्ववत् और सम्यगवृष्टी ) सन्नी मनुष्य तिर्यंचमें १५ पद्वि वाले जावे पूर्ववत् ।। भुवनपती १० व्यन्तर, ज्योतिषी, १-२ देवलोको १० पछि वाले नावे (स्त्री वर्जके ६ पंचेन्द्री, साधु, श्रावक, सम्यग० और मंडलीक तीजेसे आठमे देवलोक १० पद्वि वाये जावे पूर्ववत् परन्तु आराधिक । नौवेसे बारमें देवलौकमें ८ पद्वि वाले जावे पूर्ववत् परन्तु ( हस्ती अश्व वर्ज के) आराधिक । नौवेसे बारवें देवलो कमें ८ पद्वि पावे जावे साधु. श्रावक, सम्यक मंडलीक सेना पती, गाथापती, वार्द्धकी, पोहत नौग्रेवेक, पंचानुत्तरमें दो पदवी वाले जावे ( साधु. सम्यगदृष्टी। पावणद्वार. नारकी देघतामें पदवी १ मिले सम्यगदृष्टी) पृथ्वीकायमे ७ पछि मिले (एकेन्द्री रत्न ७) चार स्थावर में पदवी नहीं मिले। विकलेन्द्री ३ में १ पद्वि मिले (सम्यगष्टी, अपर्याप्ति अवस्थामें) समुच्चय तिर्यंचमे ११ पद्वि मिले ( एकेन्द्री ७, अश्व, हस्ती, श्रावक, सम्यग्दृष्टी) तिर्यंचपंचेन्द्री में ४ पछि मिले हस्ती अश्व० श्रावक सम्यगष्टी) असन्नी तिर्यंच में ८ पछि मिले। साते केन्द्रि और सम्यग्दृष्टी) नपुंसकमे ११ पद्वि मिले (७ एकेन्द्री, साधु, केवली, श्रावक, सम्यग्दृष्टी) कृतनपुंसक ४ पड़ी मिले (साधु, केवली, श्रावक, सम्यग्दृष्टी) जन्मनपुंसकमे २ पद्वी मिले श्रावक, सम्यगदृष्टी] समुच्चयपंचेन्द्रीमें १६ पद्वि मिले ( एकेन्द्रीय ७ वर्जके) समुच्चय मनुष्य में १४ पति मिले (७ एकेन्द्रिीय, अश्व, हस्ती पर्जके) पुरुषवेदमें १२ पति मिले ७ एकेन्द्रीय और स्त्री० वर्ज के
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy