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________________ १८६ अवधि ज्ञान होवे ? हाँ होवे । जिसको ज्ञान हावे वह व्रत नियम करे ? नही करे इसी तरह तिर्यच असुर कुमारादिसे यावत् ८ मां देवलोक तक देव पणे उपजे उसकी भी व्याख्या कर देनी मनुष्य में केवल ज्ञान और अन्त क्रिया भी कर सकते है । इसी माफीक मनुष्य श्री समझना व्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिकी व्याख्या असुरकुमारवत् करनी । सेवं भंते सेवं भंते तमेव सचम् । - 41761K थोकडा नं० १०६ ( पद्वि द्वार ) श्री पनवणा सूत्र तथा जम्बूद्वीप पन्नती सूत्रसे तेवीस पद्वि. ( १ ) सात एकेन्द्रिय रत्न १ चक्ररत्न --- खंड साधनेका रहना बतानेवाला २ छत्ररत्न - बारह योजनमें छाया करे ३ दन्डरत्न - तामस गुफाका कमाड खोले ४ खड्गरत्न –— वैरीको सजा देने के लिये ५० अंगुलका लंबा ९६ अंगुलका घोडा, आधा अंगुलका जाड़ा और ४ अंगुलकी ५ मणिरत्न मूठ यह चारों रत्न आयुध शालामें उत्पन्न होते हैं -चार अंगुल लम्बा दो अंगुल चौडा अंधेरेमें प्रकाश करनेवाला | ६ कांगणी रत्न - सोनार की अरण के आकार । आठ सोनईयों भार तोलमें आठपासा. छे तला, बारहखूंणा. इससे तमिस्रा गुफा ४९ मांडले किये जाते है । चार चार , हाथ के लम्बे होते हैं
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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