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________________ १६१ धे गुरु को प्राप्त करे और तेरवे गु० के प्रथम समय अनन्त केवल ज्ञान अनन्त केवलदशेन अनन्तचारित्र अनन्तदानलब्धि, लाभलब्धि, भोगल धि, उपभोगलब्धि, और वीर्यलब्धिको प्राप्त करे। इस गु० पर ज० एक अन्तर म० उ० आठ वर्ष क्रम पूर्व क्रोड रह कर फिर चौदवें गु० में जावे। यहां पांच लघु अक्षर (अह उल) उच्चार्ण काल रह कर पीछे अनंत, अव्याबाध, अक्षय, अविनाशी, सादी अनंत भंगे मोक्ष सुखको प्राप्त करता है। (३) क्रियाद्वार--क्रियाके पांच भेद है-आरंभीया प. रिगृहिया, मायावत्तीय, अपञ्चखाणीया ओर मिथ्यादर्शनवत्तीया पहिले और तीजे गु० में पांचों क्रिया लागे. दूजे, चौथे गुरे चार क्रिया मिथ्यादर्शन की नहीं । पाँचमे गु० तीन क्रिया ( मिथ्या ६० अवृतः नहीं) छठे गुलदो (आरम्म० माया०) क्रिया तया ७-८-९-१० गु० एक मायावतीया क्रिया और ११-१२-१३-१४ गुण पाची क्रिया नहीं, अक्रिया है। ( ४ ) बन्धद्वार --प्रथम गु० से तीसरा वर्जके सातमें गु० तक आयुष्य वर्जके सात कम बान्धे और आयुष्य बांधता हुवा ८ कर्म बांधे तथा ३-८-९ वे आयुष्य वर्ज के सात कर्म बांधे आयु प्यका अबन्धक है । दशमें गु० छे कर्म ( आयुष्य मोह० वर्ज) बांधे. ११-१२-१३ गुः एक साता वेदनी बांधे और चौदवां गु० अंबंधक है। __ नोट ज° ऊ० बंध स्थानक- वेदनीयका ज० बंध स्थान तेरवे गु० तथा ज्ञानावणिय-दर्शन० नाम० गोत्र अंतराय कर्मकाज बंध दशवें गुरु और मोहनी० का ज० बन्ध स्थान नौवें गु० है तथा उत्कृष्ट बंध सातो कर्मका मिथ्यात्व गु० में होता है। ११
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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