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________________ १५८ [६] ६ प्र. उप० १ प्र० वेदे तो उपशम. वेदक सम्यः [७१६ प्र. क्षय०१प्र. वेदे तो क्षायिक वेदक सम्य. [८] ७प्र. उपशमावे तो उपशम सम्य. [९] ७ प्र. क्षय करे तो क्षायिक सम्य इन ९ भागों में से कोई भी एक भांगा प्राप्त करके चतुर्थ गुरु में आवे। जीवादि नौ पदार्थों को यथार्थ जाणे और वीतरागदे शासन पर सच्ची श्रद्धा रक्खें। संघकी पूजा प्रभाषनादि सम्यक्त की करनी करे नौकारशी आदि वर्षी तपको सम्यक् प्रकारे श्रद्धे परन्तु व्रत पञ्चखाणादि करनेको असमर्थ । क्योंकि व्रत पञ्चखाण अप्रत्याख्यानी चौकके क्षयोपशम भावसे होता है। सो यहां नहीं है। चतुर्थ गु० याने सम्यक्त्वके प्राप्त होनेसे सात बोलोका आयुष्य नहीं बंधता-(१) नारकी ( २ ) तियेच (३) भुवनपति। (४) व्यंतर (५) ज्योतिषी (६) स्त्रीवेद (७) नपुंसकवेद अगर पहिले बंध गया हो तो भोगना पडे । चौथे गु० वाला ज० ३ भव करे उ० १५ भव करके अवश्य मोक्ष जावे । (५) देशवती ( श्रावक ) गु० का लक्षण-जीव ११ प्रकृतियाँका क्षय या क्षयोपशम करे जिसमें ७ पूर्य कह आये है और चार अप्रत्याख्यानीका चौक । यथाः। (१) क्रोध-तलावके मट्टीकी रेखा समान । (२) मान-हाडका स्थम्भ समान । (३) माया-मेंढाके सिंग समान । (४) लोभ-नगरका कीच या गाडीका खंजण समान | यह चौकडी श्राववके व्रतकी घात करती है स्थिती १ वर्ष की है और इससे तिर्यचकी गती होती है। इन ११ प्रकृतीयोंके क्षय होनेसे जीव पांचवां गु० प्राप्त करता है और जोधादि पदा
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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