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________________ १४१ पर्वत से मोदक के लड्डू छोडे और शीघ्र गतीवाला देवतां अधर हाथ में लेले, इसकी सब व्याख्या पूर्ववत् कहदेना विशेष इतना है के वहां ४ लड्डू कहे है यहां ८ कहना और वहां छे दिशी का सन्त लानेको गये कहा है यहां दश दिशी कहना और लरके की आयुष्य लक्ष वर्ष की कहना तथा गतक्षेत्र की अपेक्षा शेष रहा क्षेत्र अनन्त गुणा कहना शेष रहे क्षेत्रसे गतक्षेत्र अनन्त में भाग है इतना बड़ा अलोक है। लोक ओर अलोक किसी देवता ने नापा किया नहीं करे नहीं और करेगा नहीं परन्तु ज्ञानीयों ने ज्ञान से देखा है वैसी ही औपमा द्वारा बतलाया है। सेवंभंते सेवभंते तमेव सच्चम् । *OOK थोकडा नं. १०३. श्री भगवती सूत्र श० ५-उ०८. (परमाणु.) हे भगवान् ! परमाणु पु० इधर उधर चलता है कि स्थिर है ? गौ० स्यात् चलता है, स्यात् स्थिर है, भांगा २, दो प्रदेशी की पृच्छा ?(१ स्यातू चले (२ । स्यात् न चले (३)स्यातू देश चले स्यात् देश न चले एवं भांगा ३, तीन प्रदेशी का भी भागा ३ पूर्ववत् (४) स्यात् देश चले स्यात् बहुत से देश न भी चले (५) स्यात् बहुत से देश चले स्यात् एक देश न चले एवं भांगा ५। चार प्रदेशी के ५ भांगा पूर्ववत् (६) बहुत से देश चले, बहुत से देश नहीं चले इसी माफिक ५-६-७-८-९-१०
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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