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________________ १३२ का ( १३ ) पंचेन्द्रीय का ( १६ ) अनेन्दियका एवं १६ आलाव कहना । प्रदेशापेक्षा । (१) घणा पकेन्द्रियके घणो प्रदेश । ( २ ) एक वेरिन्द्रयका घणे प्रदेश । ( ३ ) घणो वैरिन्द्रीके धणे प्रदेश | 31 "3 एवं तेरिन्द्रीके दो, चौरिन्द्रीके दो, पंचेंद्रिीके दो, और अनेंद्रिय दो सर्व ११ अलावा कुल जीवोंके २७ भेद हुवे और अजीव के दो भेद-रुपी और अरुपी जिसमें रूप के चार भेदस्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश, और परमाणुपुद्गल, दूसरा अरूपी जिसके ६ भेद-धर्मास्तिकाय नहीं है परंतु धर्मास्तिकाय का एक देश, और घणा प्रदेश एवं अधर्मास्तिकाय देश प्रदेश आका शास्तिकाय देश, प्रदेश एवं अजीब के १० और जीवका २७ सर्व मिलाके ३७ बॉल अशिकौन में पावे एवं नैऋत्य वायकोन ईसान कौन में भी ३७-३७ बोल समझना । विमला ( ऊंचीदिशी ) में जीव के २७ भेद अग्निकौनवत् और अजीव के ११ भेद पूर्व दिशिवत् एवं ३८ बोल समज्ञना और नीची दिशी में ३७ बोल कहना कालका समय नही है। ( प्र० ) ऊंची दिशी में कालका समय है और नीची में नही कहा जिसका क्या कारण ? मेरु पर्वत का एक भाग स्फाटिक रत्नमय है और नीचे का भाग पाषाणमय है, उपर स्फटिक रत्नवाला भाग में सूर्य की प्रभा पडती है और नीचेका भाग पाषाणमय होनेसे सूर्य की प्रभाको नहीं खींच सकता इस लिये शास्त्रकार ने वहां समय की विवक्षा नहीं की, और नीची दिशा में अनेन्द्रीया का प्रदेश कहा सो यह केवली समुद्घातकी अपेक्षा से हैं । इति । सेवंभते सेवते तमेव सच्चम् । Sy Ola 77 97 " 2,
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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