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________________ ९-१० संख्याते, असंख्याते और अनन्ते प्रदेशो में भी ८-८ भांगा समझ लेना ।। एवं २-५-७-८० सब मिलाके ९४ भांगे हुवे । हे भगवान ! जीव पुदली है या पुद्गल है ? गौतम! जीव पुद्गली भी है और पुद्गल भी है क्योंकि जैसे किसी मनुष्य के पास छात्र हो उसको छत्री कहते हैं दंड हो उसको दंडी कहते हैं इसी माफिक जीव ने पूर्व काल में पुद्गल ग्रहण किया था इस वास्ते पु० ग्रहणापेक्षा से जीवको पुद्गल कहते हैं और श्रोतेन्द्रि, चक्षु०, घ्राण, रस० स्पर्शेन्द्रो की अपेक्षा से जीव को पुद्गली कहते हैं । यहा उपचरित्तनयापेक्षा समझना । पृथ्व्यादि पांच स्थावर एक स्पर्शन्द्रीय अपेक्षा पुद्गली है और जीव अपेक्षा पुद्गल है । बेइंद्रिय के दोइन्द्री, तेन्द्रीय के तीनइन्द्रिय चौरिन्द्रीय के चारइन्द्री की अपेक्षा से पुदली है और जीवापेक्षा से पुदल है नारकी १, भुवनपति १०. तिर्यंच पंचेन्द्री १, मनुष्य १, व्यंतर १, ज्योतिषी १, वैमानिक एवं १६ दंडक में पांचइन्द्री की अपेक्षा से पुद्गली है और जीव की अपेक्षा से पुद्गल है भावना पूर्ववत् । इति । सेवभंते सेवंभंते तमेव सचम् । -*@Kथोकडा नं ६ श्री भगवती सूत्र श० १०-उ० १. (लोक दिशा) . दिशा दश प्रकार की है यथा-: . (१) इन्द्रा [पूर्व दिशा ], [२] अग्नि [अग्नि कौन ]
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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