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________________ का एक क्षुलक भव १ समय अधिक उ० दोनों बोलों को २००० सागरोपम संख्याता वर्षाधिक। बनस्पतिकाय और-समुच्चय एकेन्द्रीय का सर्व अन्तर म. एकेन्द्रीय माफिक उ. असंख्याता काल पृथ्वीकाय की काय स्थितिवत्-शेष ९ बोल का सर्वे बन्धान्तर ज. एकेन्द्री माफिक और उ० अनन्त काल ( वनस्पति काल)। ( अल्पा बहुत्व ) (१) सबसे स्तोक औदारिक शरीर के सर्व बंध के जीवों। (२) अबन्धक जीवों विशेषाधिक । (३) देश बन्धक जीवों असं गुणे। (२) वैक्रिय शरीर ९ कारणों से बन्धते है जिसमें ८ पूर्व औदारिकवत् और नवमां लब्धि वैकिय । जिसका स्वामी (१ समुच्चय जीव, ( २ ; नारकी, (३) देवता, (४) वायुकाय, (५) तीर्यच पंचेद्री, (६) मनुष्य ।। समुच्चय क्रिय का बन्ध दो प्रकार के है सर्व बन्ध और देश बन्ध जिसमें सर्व बन्ध की स्थिति ज० एक समय नरकादि प्रथम समय आहार ले वह सर्वबन्ध है) उत्कृष्ट दो समय (मनुष्य, तिर्यंच औदारिक से वैक्रिय धनाता हुवा प्रथम समय का सर्वबंधका आहार गृहण करके काल करे और नारकी देवता में उत्पन्न हो वहां प्रथम समय सर्वबंध का आहार ले इसबास्ते दो समय का सर्वबंध का आहार कहा है ओर देशबंध की स्थिति ज. एक समय मनुष्यादि औदारिक शरीर से वैक्रिय बनावे उस वक्त एक समय का देशबंध का आहार ग्रहण करके काल करे ) उ०३३ सागरोपम एक समय न्युन । . नारकी, देवताओं में सर्व बन्धका आहार ज० उ० एक
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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