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________________ ८५ वर्जके ) समुच्चयवत् बोलों का पुद्गल ग्रहण करे परन्तु नियमा छे दिशी का समझना। " पृथ्वी, अप, तेउ और वनस्पति में ६ बोल (शरीर, ३ इन्द्रिय, काय १ श्वासोश्वास १) पावे और समुभयवत बोलों का पुद्गल ग्रहण करे, परन्तु दिशी में स्यात् ३-४-५ दिशी निर्व्यापात नियमा ६ दिशी का पुगल ले एवं वायुकाय परन्तु क्रिय शरीर अधिक है, और वैक्रिय शरीर पुनल नियमा छ दिशी का लेवे। बेरिन्द्री में ८ तेरिन्द्रो में ९ चौरिन्द्री में १० सर्व समुच्चयवत् समझना परन्तु नियमा छे दिशी का पुद्गल प्रहण करे।। तिर्यच पंचेन्द्रिय १३ बोल ( आहारक पर्ज के ) और मनुष्य मे १४ बोल पावे | सर्वाधिकार समुश्चयवत् २८८ बोल का पुल ग्रहण करे. परन्तु नियमा छे दिशी का ले क्योंकि १९ दंडकों के मीयों केवल सनाली में ही होते है इसलिये नियमा छे दिशी का पुद्गल प्रहण करे शेष ५ दंडक स्थावरों को सर्व लोक में है वास्ते स्यात् ३-४-५ दिशीका पु० ले। यह लोकके अन्त आभीय है। इस थोकडे को ध्यान पूर्वक विचारो। सेवंभंते सेवभते तमेव सच्चम् । थोकड़ा नं० ८२.. . - [श्री भगवती सूत्र श० २५-उ० ३.] .. (संस्थान ). . .. संस्थान-आकृती को कहते है जिसके दो भेद है जीव
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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