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________________ ॥ श्रीरत्नप्रभसूरीश्वरसद्गुरुभ्यो नमः ॥ शीघ्रबोध जाग जवां। थोकडा नं. ७७ श्री भगवती सूत्र श० २५-उ० १. (योगों की अल्पा बहुत्व ). संसारी जीवों के चौदे भेद है-जैसे सुक्ष्म एकेन्द्रि के दो मेंद पर्याप्ता, अपर्याप्ता, बादर एकेन्द्रि के दो भेद पर्याप्ता, अपर्याप्ता एवं बेन्द्रि, तेरिन्द्रि, चोरिन्द्रि, सन्नीपंचेन्द्रि और असपिचेन्द्रि के दो दो भेद पर्याप्ता अपर्याप्ता करके १४ भेद हुवे । ___जीव के आत्म प्रदेशों से अध्यवसाय उत्पन्न होते है और यह शुभाशुभ करके दो प्रकारके है। इन अध्यवसायों की प्रेरणा से जीव पुद्गलोंको ग्रहण करके प्रणमाते है उसे परिणाम कहते है वह सूक्ष्म है और परिणामों की प्रेरणा से लेश्या होती है और लेश्या की प्रेरणा से मन वचन काया के योग व्यापार होते है जिसे योग कहते है। योग दो प्रकार के होते है। (१) जघन्य योग (२) उत्कृष्ट योग । उपर जो १४ भेद जीवोंके कहे है उनमे जघन्य और उत्कृष्ट योग की तरतमता है उसी को अल्पाबहुत्व करके नीचे बतलाते है: (१) सबसे स्तोक सूक्ष्मपकेन्द्रिके अपर्याप्ताका जघन्ययोग. (२.) बादर एकेन्द्रि के अपर्याप्ता का जघन्य योग असं० गुणा. (३) बेरिन्द्रि के , " "
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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