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________________ ( ४४ ) शीघ्रबोध भाग १ लो. ( १ ) समुच्चय व्यार गति संज्ञीमनुष्य और संज्ञी तीर्थच में उत्कृष्ट विरह १२ मुहूर्तका है. ( २ ) पहली नरक दश भुवनपति, व्यंतर, जोतीषी, सौ. धर्मेशान देव और असंज्ञी मनुष्य में २४ मुहुर्त. दुजी नरकमे सात दिन, तीजी नरक में पंदरा दिन, चोथी नरकमे एक मास, पांचवी नरक में दो मास, छठी नरकमें च्यार मास, सातवी नरक सिद्धगति और चौसठ इन्द्रोंमें विरह छे मासका है. ( ३ ) तीजा देवलोक में नौदिन वीस महुर्त, चोथा देवलोक में बारहा दिन दश मुहुर्त, पांचवा देवलोकमें साढाबावीस दिन, छठा देवलोक में पैतालीस दिन, सातवा देवलोकमें एसी दिन, आठवा देवलोक में सौ दिन नौवा दशवा देवलोक में सेंकडो मास, इग्यारवा बारहा देवलोक में सेकड़ों वर्षोंका, नौग्रैवेयक पहले त्रीकमें संख्याते सेकड़ों वर्ष, दुसरी त्रीकमें संख्याते हजारों वर्ष, तीसरी वीक में संख्याते लाखों वर्ष, व्यारानुत्तर वैमानमें पल्योमके असंख्यातमे भाग, सर्वार्थसिद्ध वैमानमें पल्योपमके संख्यातमे भाग । ( ४ ) पांच स्थावरोंमें विरह नही है. तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी तीर्थच में अंतरमुहुर्त. ( ५ ) चन्द्र सूर्य के ग्रहणाश्रयी विरह पडे तों जघन्य छे मास उत्कृष्ट चन्द्रके बेयालीस मास, सूर्य के अडतालीस वर्ष । (६) भरतेरवत क्षेत्रापेक्षा, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका आश्रयी जघन्यतौ ६३००० वर्ष और अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आश्रयी जघन्य ८४००० वर्ष उत्कृष्ट सबकों देशोन अठारा कोडाकोड सागरोपमका । इति । सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम्. --***--
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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