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________________ (८) शीवबोध भाग १ लो. (३) विनयका दश भेद-१) अरिहन्तोंका विनय करे (२) सिद्धोका विनय (३) आचार्यका वि० (४, उपाध्यायका वि० (५) स्थवीरका वि० :६) गण बहुत आचार्योंके समुह)का वि० (७)कुल ( बहुत आचार्यों के शिष्यसमुह )का वि० (८) स्वाधर्मीका वि० (९) संघका वि० (१०) संभोगीका विनय करे. इन दशोका बहुमानपर्वक विनय करे। जैन शासनमें 'विनय मूल धर्म है। विनय करनेसे अनेक सद्गुणोंकी प्राप्ति हो सकती है। (४) शुद्धताके तीन भेद-१) मनशुद्धता-मन करके अरिहन्तदेव ३४ अतिशय, ३५ वाणी, ८ महाप्रातिहार्य सहित, १८ दुपण रहितx१२ गुण सहित हमारे देव है। इनके सिवाय हजारों कष्ट पडने पर भी सरागी देवोंका स्मरण न करे (२ वचन शुद्धता बचनसे गुण कीर्तन अरिहन्तोंके सिवाय दूसरे सरागी देवोंका न करे (३) काय शुद्धता-कायसे नमस्कार भी अरिहन्तोंके सिवाय अन्य सरागी देवोंको न करे। . (५) लक्षणके पांच भेद-१) सम-शत्रु मित्र पर सम परिणाम रखना २) संवेग-वैराग भाव रखना याने संसार असार है विषय और कषायसे अनन्ताकाल भव भ्रमण करते हुवे इस भव अच्छी सामग्री मिली है इत्यादि विचार करना। (३) निर्वगशरीर और संसारका अनित्यपणा चिन्तवन करना। बने जहां तक इस मोहमय जगत्से अलग रहना और जगतारक जिनराजकी दीक्षा ले कर्म शत्रुओंको जीतके सिद्धपदको प्राप्त करनेकी हमेशां अभिलाषा रखना (४) अनुकम्पा-स्वात्मा, परात्माकी ___x दानान्तराय, लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय, वीर्यातराय, हास्य, भय, शोक, जुगप्सा, रति, अरति, मिध्यात्व, अज्ञान, अवत, राग, द्वेष, निदा, मोह यह १८ दुषण न होना चाहिये ।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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