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________________ लेश्याधिकार. ( ३७३ ) माग, नवमे भाग, सत्ताईसमेंभाग इक्यासीमें भाग, दोसौतयालीसमेंभाग में जघन्य उत्कृष्ट समजना. (७) लक्षणद्वार-कृष्णलेश्या का लक्षण पांच आश्रय का सेवन करनेवाला, तीन गुप्तीसे अगुप्ती. छकायका आरंभक, आरंभमे तीव्रपरिणामी सर्व जीवोंका अहित अकार्य करनमें साहसिक इसलोक परलोक की संका रहित, निर्वस परिणामी जीव हणतां लग रहित, अजितेन्द्रिय, ऐसे पाप व्यापार युक्त हो तो कृष्णलेश्या के परिणाम वाला समजना. नीललेश्याका ‘लक्षण-इर्षावत्, कदाग्रही. तपरहित, भली विद्यारहित पर जीव को छलने में होसियार, अनाचारी, निर्लज विषयलंपट. द्वेषभावसहित, धूर्त, आठों मदसहित, मनोज्ञ स्वादका लंपट, सातागवेषी आरंभ से न निवत्तै सर्व जीवों को अहितकारी, विना सोचे कार्य करनेवाला ऐसे पाप व्यापार सहित होय उसको नीललेश्या वाला समझना. कापोतलेश्या-वांका बोले, वांका कार्य करे, निबुढ माया (कपटाइ) सरलपणारहित अपना दोष ढांके, मिथ्यादृष्टि. अनार्य दूसरे को पीडाकारी बचन बोले, दुष्टवचन बोले, चोरी करे, दुसरे जीवोंकी सुख सम्पत्ति देख सके नहीं, ऐसे पापव्यापार युक्त को कापोत लेश्या के परिणामवाला समझना. - तेजोलेश्या-मान, चपलता, कौतूहल और कपटाईरहित विनयवान, गुरुकी भक्ति करनेवाला, पांचेन्द्री दमनेवाला, श्रद्धा वान. सिद्धांत भणे तपस्या (योग वहन ) करे, प्रियधर्मी, दृढधर्मी, पापसे डरे, मोक्षकी वांछाकरे, धर्मव्यापार युक्त ऐसे परिणाम वाले को तेजोलेश्या समझना. पद्मलेश्या का लक्षण-क्रोध मान, माया, लोभ पतला (कमती) है आतमा को दमे, राग द्वेष से शांत हो. मन, वचन काया के
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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