SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 408
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३६२) शीघ्रबोध भाग ५ वा. - चौवीस दंडकों में प्रथम समय उत्पन्न हुए जीवों के जो जो घोल कह आए है उन बोलों के जीव समुच्चय पापकर्म और ज्ञा. नावरणीय आदि सात कर्मों ( आयुष्य छोड कर ) को पूर्वोक्त "बांधा, बांधे, बांधसी '' इत्यादिक चार भांगा में से केवल दो भांगो से बांधे ( बांधा बांधे बांधसी, बांधा, बांधे न बांधसी.) ____ आयुष्य कर्मको मनुष्य छोडकर शेष तेवीस दंडकों में पूर्वोक्त कहे हुऐ बोलों में “वांधा न बांधे. वांधसी"। का १ भांगा पावे. क्योंकि प्रथम समय उत्पन्न हुवा जीव आयुष्य कर्म बांधे नहीं, भूत कालमें बांधा था और भविष्य में बांधेगा. , मनुष्य दंडक में पूर्वोक्त ३७ बोलों में से कृष्ण पक्षी में मांगा १ तीसरा शेष छत्तीस बोलों में भागा २ पावै. तीसरा और चौथा इति द्वितीयोदेशकम्. शतक २६ उददेशो ३ जो परम्परोवनगा. उत्पत्ति के दूसरे समय से यावत् आयुष्य के शेष काल को "परम्पर उववन्नगा," कहते हैं. इसी शतक के प्रथम उद्देसे में ४७ बोलों में से जितने २ बोल प्रत्येक दंडक के कह आये हैं. उसी माफक परमपर उववन्नगा जावों के समुच्चय जीवादि दंडको में भी कहना. तथा बांधी का भांगा चारोसर्व अधिकार प्रथम उसे के माफक कहना. बांधी के भांगों के साथ " परम्पर उववन्ना" का सूत्र नरकादि सर्व दंडक के साथ जोड लेना. इति तृतीयों देशकम्. श्री भगवती सूत्र श० २५ उ० ४ अणंतर ओगाडा. जीव जीस गति में उत्पन्न हुवा है उसगति के आकास प्रदेश अवगधा ( आलंबन किये ) को एक ही समय हवा है उसको अणंतर ओगाडा कहते है. इसके बोल और बांधी के मांगों का सर्वाधिकार अणंतर उववन्नगा द्वितीय उद्देसे के माफक कहना. और अणंतर उववन्नगा की जगह पर अणंतर ओगाडा का सूत्र
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy