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________________ इर्यावहिबन्ध. (३४९) हे भगवन् ! कर्म कितने प्रकारसे बंधता है ! दो प्रकारसे-यथा ? इर्यावहि ( केवल योगोंकि प्रेरणा से ११-१२-१३ गुणस्थानक में बंधता है ) २ संप्राय ( कषाय और योगों से पहिले गुणस्थानक से दसवें गुणस्थानक तक बंधता है। इर्यावहि कर्म क्या नारकी, के जीव बांधे तीर्यच, तीर्थचणी मनुष्य. मनुष्यणी देवता, देवी बांधते है! नारकी, तीर्यच, तीर्यचणी देवता, देवी न वांधे शेष मनुष्य, और मनुष्यणी, बांधे. भूतकाल में बहुत से मनुष्य और मनुष्यणीयों ने इर्यावहि कर्म बांधा था और वर्तमान काल का भांगा ८ यथा १ मनुष्य एक २ मनुष्यणी एक३ मनुष्य बहुत ४ मनुष्णी बहुत ५ मनुष्य एक और मनुष्यणी एक ६ मनुष्य पक और मनु. व्यणी बहुत ७ मनुष्य बहुत और मनुष्यणी एक ८ मनुष्य बहुत और मनुष्यणीया बहुत। इर्यावहि कर्म क्या एक खी बांधे या एक पुरुष बांधे या एक नपुंसक बांधे! एसेही क्या बहुत से स्त्री, पुरुष, नपुंसक बांधे। . उक्त ६ ही बोलवाले जीव नहीं बांधे। क्या इर्यावहि कर्मनोत्री, नोपुरुष, नोनपुंसक बान्धे ( पहिलेवेदका उदयथा तब खी पुरुषादि कहलाते थे फीर वेदके क्षयहोने से नोखी नोपुरषादि कह जाते है । ( उत्तरमें) - हां, बांधे मूतकाल में बांधा वर्तमान में बांधे और भविष्यमें बांधेगे. जिसमें वर्तमान बंध के भांगा २६ यथा असंयोगभांगा ६ एक नोखी बांधे बहुतसी नो बीयां बांधे २ एक नो पुरुष बांधे ३ बहुत से नोपुरुष बांधे ४ एक नो नपुंसक बांधे ५ बहुत से नो नपुंसक बांधे।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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