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________________ ( ३३४) शीघ्रबोध भाग ५ वा. थोकडा नं. ४८. .. श्री भगवतिसूत्र शतक ८ उ० १० (कर्म विचार.) लोकके आकाशप्रदेश कितने है ! असंख्यात है. एक जीषके आत्मप्रदेश कितने है! , . असंख्याते है. ( जितने लोकाकाशके प्रदेश है, उतनेही एक जीवके आत्मप्रदेश है.) कर्मको प्रकृति कितनी है ? आठ-यथा ज्ञानावर्णीय, दर्शनावर्णीय, वेदनी, मोहनी, आयुष्य, नाम, गोत्र, और अंतराय, नरकादि चोवीस दंडकके नीवोंके आठ कर्म है. परंतु मनुष्योंमे आठ, सात, और चार भी पाये जाते है. (वीतराग केवली कि अपेक्षा) ज्ञानावर्णीय कर्म के अविभाग पलीछेद (विभाग) कितने है? अनंत है. एवम् यावत अंतरायकर्म के नरकादि चोवीस दंडकमें कहना. एक जीवके एक आत्मप्रदेशपर ज्ञानावर्णीय कर्मकी कितनी अवेडा पवेडी (कर्मका आंटा जैसे ताकलेपर सूतका आंटा) है ? कितनेक जीवोंके है और कितनेक जीवोंके नहीं है ( केवलीके नहीं.) जिन जीवोंके है, उनके नियमा अनंती २ है. एवम् दर्शनावर्णीय, मोहनी, और अंतरायकर्मभी यावत् आत्माके असंख्यात प्रदेशपर समझ लेना.
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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