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________________ ( ३२४ ) शीघ्रबोध भाग ५ वां. और निद्रा निद्रा एवम् ४ प्रकृति का उदय विच्छेद होने से शेष ५५ का उदय होय. (१३) सयोगी केवली गुण० में ज्ञानावरणीय ५ दर्शनावरft ४ अन्तराय ५ एवम् १४ प्रकृति का उदय विच्छेद होने से ४१ प्रकृति और तिर्थंकर नाम कर्म को मिलाकर ४२ प्रकृति का उदय होय. (१४) अयोगी गुण० में १२ प्रकृति का उदय होय मनुष्यगति १ मनुष्यायु २ पंचेन्द्री ३ सौभाग्य नाम कर्म ४ त्रस ५ बादर ६ पर्याप्ता ७ उच्चैगौत्र ८ आदेय ९ यशकीर्ति १० तिर्थकर नाम ११ वेदनी १२ ये बारे प्रकृतियों का उदय चरम समय विच्छेद होय. ॥ इति उदयद्वार समाप्तम् ॥ अब उदीरणा अधिकार कहेते हैं. पहिले गुण स्थानक से छ गुणस्थानक तक जैसे उदय कहा वैसे ही उदीरणा भी क हनी. और सात में गुण स्थानक से तेरमें गुण स्थानक तक जो २ उदय प्रकृति कही है उसमें से शाता वेदनीय १ अशाता वेदनीय २ और मनुष्यायु ३ ये तीन प्रकृति कम करके शेष प्रकृति रहे तो हरेक जगह कहना. चौदमें गुण स्थानकमें उदीरणा नहीं. ॥ इति उदीरणा समाप्तम् ॥ -**@** थोकडा नं. ४६ ( सत्ता अधिकार ) (१) मिथ्यात्व गुण ० में १४८ प्रकृति की सत्ता. ( २ ) सास्वादन गुण० में जिन नाम कर्म छोडकर १४७ प्रकृतिकी सत्ता रहती है.
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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