SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३१२ ) शीघ्रबोध भाग ५ वा. क्रियासे ही मोक्षमार्ग मानना मोक्षमार्गका अल्पा करना याने नास्ति है इस लोक परलोक पुन्य पाप आदिकी. नास्ति करना खाना पीना ऐस आराम भोग विलास करनेका उपदेश करना इत्यादि उपदेश दे भद्रीक जीवोंको सन्मार्गसे पतितकर उन्मार्ग के सम्मुख करवा देना. जिनेन्द्र भगवानकी या भगवानके मूर्त्तिकि तथा चतुर्विध संघकि निंदा करने समवसरण - चम्र छत्रादिका उपभोग करनेवाले वीतरागत्य हो ही न सके इत्यादि कहना - जिनप्रतिमाकी निंदा करना पूजा प्रभावना भक्तिके हानि पहुंचना सूत्र सिद्धान्त गुरु या पूर्वाचार्योंकी तथा महान् ज्ञानसमुद्र जैसे ग्रन्थोकी निंदा करना यह सर्व दर्शन मोहनियकर्म बन्धक हेतु है जिनोंसे अनंतकाल तक वीतरागका धर्म मोलनाभी असंभव हो जाता है। चारित्र मोहनिय कर्म बन्धके हेतु-जैसे चारित्रपर अभाव लाना. चारित्रवन्त कि निंदा करना मुनि के मल-मलीन गात्र aa देख दुगंच्छा करना खराब अध्यावसाय रखना. व्रत करके खंडन करना विषय भोगों कि अभिलाषा करना यह सब चारित्र मोहनीयकर्म बन्धका हेतु है जिस चारित्र मोहनियका दो भेद है (१) कषाय चारित्र मोहनिय (२) नोकषाय चारित्र मांहनीय - जिस्मे कषाय चारित्र मोहनिय जैसे अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ करनेसे अनन्तानुबन्धी आदिका बन्ध एवं अप्रत्याख्यानी - प्रत्याख्यानी और संज्वलन इनोंके करने से कषाय चारित्र मोहनीय कर्मबन्धता है तथा भांड जैसी कुचेष्टा करना हाँसी करना कतूहल करना दुसरोंकी हाँसी विस्मय कराना इत्यादि इनोंसे हास्य मोहनिय कर्मबन्ध होता है। आरंभ में खुशी माननेवाला, मेला खेला देखनेवाला चक्षुलोलुपी देशदेशके नया नया नाटक देखना चित्रचित्रामादि खींचना प्रेमसे दुसरोंके
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy