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________________ ( ३१०) शीघ्रबोध भाग ५ वां. पुस्तकोंसे तकीयेका काम लेना। पुस्तकों को भंडारमें पडे पडे सड़ने देना किन्तु उनोंका सद्दउपयोग न होने देना उदरपोषणके लक्षमे रखकर पुस्तके वेचना इनोंके सिवाय भी ज्ञान द्रव्यकि आमंदको तोडना ज्ञानद्रव्यका भक्षण करना इत्यादि कारणांसे ज्ञानावर्णीय कर्मका बन्ध होता है अगर उत्कृष्ट बन्ध हो तो तीस कौडाकोड सागरोपम के कर्म बन्ध होनेसे इतनेकाल तक कीसी कीस्मका ज्ञान हो नहीं सकते है वास्ते मोक्षार्थी जावोंको ज्ञान आशातना टालके ज्ञानको भक्ति करना-पढनेवालोंकों साहिता देना पढनेवालोंको साधन वस्त्र भोजन स्थान पुस्तकादि देना। (२ दर्शना वरणीय कर्मबन्धका हेतु-दर्शनी साधु भगवान् तथा जिनमन्दिर जैनमूर्ति जैन सिद्धान्त यह सब दर्शनके कारण है इनोंकी अभक्ति आशातना अवज्ञा करना तथा साधन इन्द्रियों का अनिष्ट करना इत्यादि जसे ज्ञानविर्णिय कर्म बन्धके हेतु कहा है इसी माफीक स्वल्पही दर्शनावर्णियकर्मका भी समजना । बन्ध ओर मोक्षमें मुख्य कारण आत्मा के परिणाम है वास्ते ज्ञान ओर ज्ञानसाधना तथा दर्शनी (साधु ) ओर दर्शन साधनोके सन्मुख अप्रीती अभक्ति आशातना दीखलाना यह कर्मबन्धके हेतु है वास्ते यह बन्धहेतु छोडके आत्माके अन्दर अनंत ज्ञानदर्शन भरा हुवा है उनको प्रगट करने का हेतु है उनसे प्रेमस्नेह और अन्त में रागद्वेषका क्षयकर अपनि निज वस्तुवोंके प्राप्त कर लेना यहही विद्वानों का काम है (३) वेदनियकर्म दो प्रकारसे बन्धता है (१) साताबे. दनिय (२) असातावेदनिय-जिस्मे लातावेदनियकर्मबन्धके हेतु जैसे गुरुओंकी सेवा भक्ति करना अपनेसे जा श्रेष्ट है वह गुरु जैसे माता पिता धर्माचार्य विद्याचार्य कलाचार्य जेष्ट भ्रातादि क्षमा करना याने अपनेमे बदला लेनेकी सामर्थ्य होनेपर भी
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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