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________________ कर्म विषय. (२६५) जाते है (१) प्रदेशोदय (२) विपाकोदय जिस्मे तप, जप, ज्ञान, ध्यान, पूजा, प्रभावनादि करनेसे दीर्घ कालके भोगवने योग्य कर्मोको आकर्षण कर स्वल्प कालमें भोगव लेते है जिसकी खबर छमस्थोंको नहीं पडती है उसे प्रदेशोदय कहते है तथा कर्म विपाकोदय होने से जीवोंको अनेक प्रकारकी विटम्बना से भोगवना पडे उसे विपाकोदय कहते है। अशुभ कर्मोदय भोगवते समय आर्तध्यानादि अशुभ क्रिया करने से उन अशुभ कर्मों में और भी अशुभ कर्म स्थिति तथा अनुभाग रसकि वृद्धि होती है तथा अशुभ कर्म भोगवते समय शुभ क्रिया ध्यान करने से वह अशुभ पुदगल भी शुभपणे प्रणम जाते है तथा स्थितिघात रसघात कर बहुत कर्म प्रदेशों से भोगवके निर्जरा कर देते है ॥ शुभ कर्मोदय भोगवते समय अशुभ क्रिया करनेसे वह शुभ कर्म पुद्गल अशुभपणे प्रणमते है और शुभ क्रिया करनेसे उन शुभ कर्मों में और भी शुभकि वृद्धि होती है वह शुभ कर्म सुखे सुखे भोगवके अन्त में मोक्षपदको प्राप्त कर लेते है। साहुकार अपने धन का रक्षण कब कर सकेंगे कि प्रथम चौर आनेका कारण हेतु रहस्तेको ठीक तोरपर समज लेंगे फीर उन चोर आनेके रहस्तेकों बन्ध करवादे या पेहरादार रखदे तो धन का रक्षण कर सके इसी माफीक शास्त्रकारोंने फरमाया है कि प्रथम चौर याने कर्मों का स्वरूपको ठीक तोरपर समजो फीर कर्म आनेका हेतु कारणको समजो. फीर नया कर्म आनेके रहस्तेकों रोकों और पुराणे कर्मोंको नाश करने का उपाय करों तांके संसार का अन्त कर यह जीव अपने निज स्थान ( मोक्ष को प्राप्त कर सादि अनंत भागे सुखी हो। - कर्मोंकि विषय के अनेक ग्रन्थ है परन्तु साधारण मनुष्योंके लिये एक छोटीसी कीताब द्वारा मूल आठ कर्मोंकि उत्तरकर्म
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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