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________________ इस सुअवसरपर श्री सुखसागर ज्ञान प्रचारक नामकि संस्थाकि भी स्थापना हुइ थी संस्थाका खास उदेश यह रखा गया था कि जैनशासनके सुख समुद्र में ज्ञानरूपी अगम्य जल भरा हुवा है उन ज्ञानामृतका आस्वादन जनताको एकेक बिंदु द्वारा करवा देना चाहिये. इस उदेशका प्रारंभमें श्री द्रव्यानुयोग द्वितीय प्रवेशिका प्रथम बिन्दु तथा श्री भाव प्रकरण दूसरा बिन्दु आप लोगोंकी सेवामें पहुंचा दिया था। यह तीसरा बिन्दु जो शीघ्रबोध भाग १-२-३-४-५ जो प्रथम ओर दुसरी आवृति श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला-फ. लोधीसे छप चुकीथी परन्तु वह सब नकले खलास हो जानेपरभी मागणी अधिक और अति लाभ जानके नइ आवृति जोकि पहले कि निष्पत इस्मे बहुत सुधारा करवाया गया है शीघ्र बोध भाग पहले में धर्म के सन्मुख होनेवालेके गुण, मार्गानुसारीके ३५ बोल व्यवहार सम्यकत्वके ६७ बोल, पैतीस वोल लघुदंडक महादंडक धिरहद्वार रूपी अरूपी उपयोग चौदाबोल वीसवोल तेवीस बोल चालीस बोल १०८ बोल और छे आरों का इतिहासका वर्णन है दुसरा भागमें विस्तार पूर्वक नौतत्व पचवीस क्रियाका विवरण है। तीसरा भागमें नय निक्षेपा स्याद्वादं षद्रव्य सप्तभंगी अष्ट. पक्ष द्रव्यगुणपर्याय आदि जी जैनागमकि खास कुंजीयों कहलाती है भाषा आहार संज्ञायोनि और अल्पा बहुत्व आदि है। चोथा भागमें मुनिमहाराजोंके मार्ग जेसे अष्ट प्रवचन, गौचरीके दोष, मुनिके उपकरण, साधु समाचारी आदि हे ।। पांचवें भागमें को कि दुर्गम्य विषयभी बहुत सुगमतासे लिखी गइ है इन पांचो भागकि विषयानुक्रमणिका देखनेसे आपको रोशन हो जायगा कि कितने महत्ववाले विषय इन भागोंमे प्रकाशित करवाये गये है। अब हम हमारे पाठकों का ध्यान इस तर्फ आकर्षित करना चाहते है कि जितने छदमस्थ जीव है उन सबकि एकरूची नही
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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