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________________ (२६८) शीघ्रबोध भाग ४ था. हनेपर वेद क्षय होते है और उक्त दोनों संयम नौवा गुणस्थान. . तक है। अगर सवेद होतो त्रिवेद, पुरुषवेद नपुंसकवेद इस तीनों वेदमे होते है । परीहार विशुद्ध मंयम पुरुषवेद पुरुष नपुंसकवे. दमें होते है सुक्ष्म० यथाख्यात यह दोनो संयम अवेदी होते है जिस्मे उपशांत अवेदी ( १०-११-गु० ) और क्षिण अवेदी (१० १२-१३-१४ गुणस्थान ) होते है इति द्वारम् । (३: राग-च्यार संयम सरोगी होते है यथाख्यात सं० वितरागी होते है सो उपशान्त तथा क्षिण वीतरागी होते है। (४) कल्प-कल्पके पांच भेद है। १) स्थितकल्प-पत्रकल्प उदेशीक आहारकल्प राजपण्ह शय्यातरपण्ह मासीकल्प चतुर्मासीक कल्प व्रतकल्प प्रतिक्रमणकल्प कृतकमकल्प पुरुषजेष्टकल्प एवं (१०) प्रकारके कल्प प्रथम और चरम जिनों के साधुवोंके स्थितकल्प है। (२) अस्थित कल्प पूर्वजो १० कल्प कहा है वह मध्यमके २२ तीर्थकरोंके मुनियोंके अस्थित कल्प है क्योंकि (१) शय्यातर व्रत, कृतकर्म, पुरुष जेष्ट, यह च्यार कल्पस्थित है शेष छे कल्प अस्थित है विवरण पर्युषण कल्पमें है। (३) स्थिवर कल्प-मर्यादा पूर्वक १४ उपकरण से गुरुकुल वासो सेवन करे गच्छ संग्रहत रहै । और भी मर्यादा पालन करे। (४) जिनकल्प-जघन्य मध्यम उत्कृष्ट उत्सर्ग पक्ष स्वीकार कर अनेक उपसर्ग सहन करते जंगलादिमें रहे देखो नन्दीसूत्र विस्तार । (५) कल्पातित-आगम बिहारी अतिश्य ज्ञानवाले महात्मा जो कल्पसे वीतिरक्त अर्थात् भूत भविष्यके लामालाभ देख कार्य करे इति। सामा० सं० में पूर्वोक्त पांचों कल्पपावे छेदो० परिहार० में कल्प तीन पावे, स्थित कल्प, स्थिवर कल्प, जिन कल्प,
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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