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________________ ( १७ ) सूत्र, समवायांगजी सूत्र, अनुयोगद्वार सूत्र, नन्दीजी सूत्र स्थानायांगजी सूत्र, जम्बुद्विपपन्नति सूत्र, आचारांग सूत्र, सूत्र कृतांगजी सूत्र, उपासकदशांग सूत्र, अन्तगढदशांग सूत्र, अनुत्तरोववाइजी सूत्र, निरियावलकाजी सूत्र, कप्पवर्डसियाजी सूत्र, पुप्फीयाजी सूत्र, पुप्फचूलीयाजी सूत्र, विन्ही दशांगजी सूत्र, बृहत्कल्प सूत्र, दशाश्रुतखंध सूत्र, व्यवहार सूत्र, निशिथ सूत्र और कर्मप्रन्थादि प्रकारणों से खास द्रव्यानुयोगका सूक्ष्म ज्ञानकों सुगमतारूप हिन्दी भाषामें जो कि सामान्य बुद्धिवाला भी सुखपूर्वक समज के लाभ सके और इन भागोंमें बारहा सूत्रोंका हिन्दी भाषान्तर भी करवाया गया है शीघ्रबोधके प्रथम भाग से पंचवीसवां भाग तकके लिये यहां विशेष विवेचन करनेकि आवश्यक्ता नहीं है. उन भागोंकि महत्वता आद्योपान्त पढने से ही हो सक्ती है इतना तो लोगोपयोगी हुवा है कि स्वल्प ही समय में उन भागोंकि नकलो खलासे हो गइ थी और ज्यादा मांगणी होने से द्वितीयावृत्ति छपाइ गइ थी वह भी थोडा ही दोनों में खलास हो जाने से भी मांगणी उपर कि उपर आ रही है । अतेव उन भागोंकों और भी छपानेकि आवश्यक्ता होने से पुष्प २६-२७-२८-२९-३० को इस संस्था द्वारा प्रगट कीया जाता है. उन शीघ्रबोधके भागोकि जेसी जैन समाज में आदर सत्कार के साथ आवश्यक्ता है उत्तनी ही स्थानकवासी और तेरापन्थी लोगोंमें आवश्यक्ता दिखाई दे रही है। इस संस्था में जीतना ज्ञानकि सुगमता है इतनी ही उदारता है शरू से पुस्तकोंकि लागी किंमत से भी बहुत कम किंमत रखी गइ थी. जिसमे भी साधु साध्वीयों, ज्ञानभंडार, लायब्रेरी आदि संस्थाओंकों तो भेट हा भेजी जाती थी. जब ४५ पुष्प छप चुके थे . वहांतक भेट से ही भेजे जाते थे बादमें कार्यकर्त्तावोंने सोचा कि पुस्तकोंका अनादर होता है, आशातना बढती है. इस वास्ते लागी किंमत रख देना ठीक है कारण गृहस्थोंके घर से रूपैया
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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