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________________ निग्रन्थाधिकार. (२५९) चौदे पूर्वधर, दश पूर्वधर, श्रुतकेवली, और जातिस्मरणादि. शानी ॥ पुलाक-स्थितीकल्पी, अस्थितीकल्पी, स्थिवरकल्पी, होते है. वकुश, पडिसेषणा पूर्ववत् तीन और जिनकल्प भी होवे. कषायकुशील पूर्ववत् चार और कल्पातीतमें भी होवे. निग्रंथ, स्नातक-स्थित० अस्थित और कल्पातीतमें होवे. द्वारम्. (५) चारित्र ५ सामायिक, छेदोपस्थापनिय, परिहारविशुद्धि, सुक्षमसंपराय, यथाख्यात-पुलाक, वकुश, पडिसेवणमें समायक, छेदो० चारित्र होता है. कषायकुशीलमें सामा छेदो० परि० सूक्ष० चारित्र होते है. और निग्रंथ, स्नातकमें यथाख्यात चारित्र होता है. द्वारम्.. ६) पडिसेवण २ मूलगुणप० उत्तरगुणप० पुलाक, पडिसे. वणी मुलगुणमें (पंचमहाव्रत ) और उत्तरगुणमें ( पिण्डविसुद्वादि) दोषों लगावे बुकश मुलगुणअपडिसेवी उत्तरगुणपडिसेवी वाकी तीन नियंठा अपडिसेषी. द्वारम्. (७) ज्ञान. ५ मत्यादि पुलाक, वकुश, पडिसेवणमें दोज्ञान मति, श्रुति ज्ञान और तीन हो तो मति, श्रुति, अवधि, कपायकुशील, और निग्रंथमें ज्ञान दो. तीन चार पावे. दो हो तो मति, श्रुति. तीनहो तो मति श्रुति, अवधि या मनःपर्यव० चार हो तो मति, श्रुति, अवधि और मनःपर्यव स्नातकमें एक केवलज्ञान और पङनेआश्री पुलाक जघन्य नौ । ९ । पूर्वन्युन उत्कृष्ट नौ (९) पूर्व सम्पूर्ण. वकुश, पडिसेवण जघन्य अष्टप्रवचनमाता उ० दशपूर्व. कषायकुशील ज० अष्टप्रवचनमाता उ०१४ पूर्व. निग्रंथ भी न९ अष्ट प्र० उ० १४ पूर्व पङ स्नातकसूत्र वितिरिक्त. द्वारम्. ( ८ ) तीर्थ-पुलाक, बकुश, पडिसेषण तीर्थमें होवे शेष
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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