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________________ निग्रंथाधिकार. . (२५७ ) पदवी यांच्छे । जैसे शालीके गाइठाको उपण-वायुसे बारीक शीणे कचरेको उठा दीया परन्तु बडे बडे डांखले रह गये। (४) कषायकुशील-५ भेद-ज्ञान, दर्शन, चारित्रमें कषाय करे, कषायकरके लिंग पलटा, अहासुहम, ( तप करी कषाय करे ) कचरा रहित शाली। (५) निग्रंथ-५ भेद-प्रथम समय नग्रंथ, ( दशमें गुणस्थानकसे, इग्यारावे गु० बाराहवे गु० वाले प्रथम समयवर्ते । अप्रथम समय, (दो समयसें ज्यादा हो) चर्मसमय, जिसको १ समयका छनस्थापना शेष रहा हो) अचमसमय, (जिसको दो समयसे ज्यादा बाकी हो ) अहासुहम, (सामान्य प्रकारे धर्ते ) शालीको दल छातु निकालके चावल निकाले हुवे । (६) स्नातक-५ भेद-अच्छवी, (योगनिरोध ) असबले, ( अतिचारादि सबला दोष रहित ) अकम्मे, (घातीकर्म रहित) संसुद्ध झानदर्शन धारी केवली, अपरिस्सावी, (अवंधक) ज्ञान दर्शनधारी अरिहंत जिन केवलीजेसे निर्मल अखंडित सुगन्धी चावलोंकी माफीक। .. _ऐसे छे प्रकार के साधु कहे हैं. इनकी परस्पपर शुद्धता शालीका दृष्टांत देकर समझाते हैं। जैसे मट्टी सहित उखाडी हुई शालाकाएला जिसमें सार कम ओर असार जादा. वैसेही पुलाकसाधुमें चारित्रकी अपेक्षा सारकम और अतिचारकी अ. पेक्षा असार ज्यादा है दूसरा शालका गाईठा (खला) पहलेसे इसमें सार जादा है. क्योंके पूलमें जो रेतीथी वह निकल गई वैसेही पुलाकसे बकुशमें सार जादा है. तीसरा उडाई हुई शाली, जो बारीक कचराथा वह हवासे उड गया. वैसेही वकुशसे पडिसे.
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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