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________________ ३६ बोल. ( २५३ ) ( ३३ ) गुरुकी तैंतीस आशातना - गुरुके आगे शिष्य चले तो आशातना, गुरुकी बराबर चलेतो० गुरूके पीछे स्पर्श करता चलेतो एवम् तीन, बैठते समय और तीन खडे रहते समय तीन एवं नौ प्रकार से गुरूकी आशातना होती है गुरूशिष्य एकसाथ स्थंडिल जावे और एक पात्रमें पानी होतो गुरूसे शिष्य पहिले सूचि करे तो, स्थंडिलसे आकर गुरूसे पहिले इरियावही पडि कमेंतो० विदेश से आयेहुवे श्रावकके साथ गुरुसे पहिले शिष्य वार्तालाप करेतो० गुरू कहे कौन सूते है और कौन जागते है. तो जागता हुवा शिष्य न बोलेतो ० शिष्य गौचरी लाकर गुरूसे आलोचना न ले और छोटेके पास आलोचना करेतो' पहिले छोटेको आहार बताकर फिर गुरूको आहार बतावेतो पहले छोटे साधुको आमंत्रण करके फिर गुरुको आमंत्रण करतो० गुरुले विना पुछे दूसरोंको मनमान्य आहार देतो० गुरुशिष्य एक पात्र आहार करे और उसमेंसे शिष्य अच्छा २ आहार करेतोο गुरुके बोलानेपर पीछा उत्तर न देतो० गुरुके बुलानेपर शिष्य आसनपर बैठाहुवा उत्तर देतो० गुरुके बुलानेपर शिष्य कहे क्या कहते हो ऐसा बोलतो० गुरु कहे यह काम मतकरो शिष्य जवाब दे कि तू कौन कहनेवालातो० गुरु कहे इस ग्लानीकी वैयावच करो तो बहोत लाभ होगा इसपर जवाब दे क्या आपको लाभ नहीं चाहिये ऐसा बोलेतो० गुरुको तुकारा हुंकारा दे लापरवाई से बोले ) तो० गुरुका जातीदोष कहेतो० गुरु धर्मकथा करे और शिष्य अप्रसन्न होवेतो० गुरु धर्मदेशना देताही उसवक्त शिष्य कहे यह शब्द ऐसा नहीं ऐसा है तो० गुरु धर्मकथा कहे उस परिषद में छेदभेद करेतो ० जो कथा गुरु परिषदामें कहीहो उसी कथाको उतीपरिषदा में शिष्य अच्छी तरह से वर्णन करती० गुरु धर्मकथा कहते हो और शिष्य कहे गोचरीकी वखत होगई 1 0
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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