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________________ अष्टप्रवचन. ( २३३) यह कटोरी कुडछी लीप्त पडी रहने से जीवोंकि विराधना होती है और धोने से पाणीके जीवोंकी विराधना हो ,, [४०] दायगोदोष-दातार अगोपांगसे हिन हो, अंधा हो जिनसे गमनागमनमें जीव विराधना होती हो,, [४] लीत्तूदोष-तत्कालका लिपा हुवा आंगण हो ,, [४२] छंडियेदोष-घृतादिके छोटे टीपके पडते देवे ,, [ख] यह दश दोष मुनि गृहस्थों दोनोंके प्रयोग से लगते है वास्ते दोनोको ख्याल रखना चाहिये। एवं ४२ दोष श्री आचारांग सूयगडायांग तथा निशिथ सूत्रोंमें और विशेष खुलासा पिंड. नियुक्तिमें है। प्रसंगोपात अन्य सूत्रों से मुनि भिक्षाके दोष लिखे जाते है। श्री आवश्यकसूत्रमें [१] गृहस्थोंके घरका कमाड दरवाजा खुलाके तथा कुच्छ खुला हो उनोंके अन्दर जा के भिक्षा लेना मुनियोंके लिये दोषित है [२] कीतनेक देशोम पहले उत्तरी हुइ रोटी तथा घाट खीच चावल अग्रभागका गौ कुत्तादिकों डालते है वह लेना मुनिको दोषित है [३] देव देवीके बलीका आहार लेना दोषित है [४] विगर देखी हुइ वस्तु लेना दोष है [५] पहले निरस आहार आया हो पीच्छे से कीती गृहस्थोंने सरसा— हारकि आमंत्रण करी हो वह लोलुपतासे ग्रहन करते समय विचार करे कि अगर आहार बड जावेगें तो निरस आहार परठ देगें तो दोषित है. कारण आहार परठनेका बड़ा भारी प्रायश्चित्त है. श्री उत्तराध्ययनजीसूत्र-- [१] अज्ञात कुलकि भिक्षा न करके अपने सजन संबंधी. योंके वहांकि भिक्षा करना दोष है २] मकारण याने विनों कारण आहार करना भी दोष है वह कारण छ प्रकारके है शरीर में रोगादि होने से, उपसर्ग होने से ,, ब्रह्मचर्य न पलता हो तो
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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