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________________ (१३) प्रस्तावना. प्यारे सज्जन गण ! यह बात तो आपलोग बखुबी जानते है कि हरेक धर्मका महत्व धर्म साहित्य के ही अन्तर्गत रहा हुधा है जिस धर्मका धमसाहित्य विशाल क्षेत्र में विकाशित होता है उसी धर्मका धर्म महत्व भी विशाल भूमिपर प्रकाश किया करता है अर्थात् ज्यों म्यों धर्मसाहित्य प्रकाशित होता है त्यों त्यो धर्मका प्रचार बढा हा करता है। __ आज सुधरे हुवे जमाने के हरेक विद्वान प्रत्येक धर्म साहित्य अपक्षपात दृष्टिसे अवलोकन कर जिस जिस साहित्यके अन्दर तत्त्व वस्तु होती है उसे गुणग्राही सजन नेक दृष्टिसे ग्रहन कीया करते है अतेव धर्म साहित्य प्रकाश करने कि अत्यावश्यक्ता कों सब संसार एक दृष्टिसे स्वीकार करते है। धर्म साहित्य प्रकाशित करने में प्रथम उत्साही महाशयजी और साथमें लिखे पढे सहनशील निःस्पृही पुरुषार्थी तथा तन मन धनसे मदद करनेवालों कि आवश्यक्ता है। प्रत्येक धर्मके नेता लोग अपने अपने धर्म साहित्य प्रकाशित करने में तन धन मनसे उत्साही बन अपने अपने धर्म साहित्यका जगतमय बनाने कि कोशीस कर रहे है। दुसरे साहित्य प्रेमियों कि अपेक्षा हमारे जैनधर्मके उच्च कोटीका पवित्र और विशाल साहित्य भण्डारों कि ही सेवा कर रहा है पुरांणे विचारके लोग अपने साहित्य का महत्व ज्ञान भण्डारोंमें रखने में ही समझ रहे थे । इस संकुचित विचारोंसे हमारे धर्म साहित्य कि क्या दशा हुइ वह हमारे भण्डारों के
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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