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________________ योनिअधिकार. (२२१) नहीं है। वन्सीपत्तायोनि शेष सर्व संसारी जीवोंकि माताके होती है जीस योनि में जीव उत्पन्न होते हैं वह जन्मते भी है वि. ध्वंस भी होते है । इति सेवंभंते सेवंभते तमेवसच्चम् । थोकडा नम्बर २८. सूत्रश्री भगवतीजी शतक १ उद्देशा १ सर्व जीव दो प्रकार के है उसे आरंभी कहते है (१) आत्मा का आरंभ करे. परका आरंभ करे, दोनों का आरंभ करे. (२) कीसी का भी आरंभ नही करे वह अनारंभीक है. इसका यह कारण है कि जो सिद्धों के जीव है वह तो अनारंभी है और जो संसारी जीव है वह दो प्रकार के है (१) संयति (२) असंयति. जिस्में संयति के दो भेद है. (१) प्रमादि संयति दुसरे अप्रमादि संयति.जो अप्रमादि संयति है वह तो अनारंभी है और जो प्रमादि संयति है उनोंके दो भेद है एक शुभयोगि दुसरा अशुभ योगि जिस्में शुभ योगि है वहतों अनारंभी है और जो प्रमादि संयति अशुभ योगि है वह आत्मा आरंभी है परारंभी है उभया. रंभी है एवं असंयति भी समजना। एवं नरकादि २३ दंडकनों आत्मारंभी परारंभी उभयारंभी है परन्तु अनारंभी नही है और मनुष्य समुच्चय जीवकि माफीक संयति अप्रमादि और शुभ योगवाले तो अनारंभी है ३। शेष आरंभी है. ... लेश्यासंयुक्त जीवोंके लिये वह ही बात है जो संयति अप्र. मादि और शुभ योगवाले है वह तो अनारंभी है शेष आरंभी है
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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