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________________ ( १८४ ) शीघबोध भाग ३ जो. संग रहनेसे अनेक प्रकारके नये नये रूप धारण करने पर भी . चैतन्य तो अरूपी है परन्तु छदमस्थोंके ध्यानके लिये कीसीने कीसी आकारकि आवश्यक्ता है जेसे अरिहंत अरूपी है तथपि उनोंकि मूर्ति स्थापन कर उन शान्त मुद्राका ध्यान करना । रूपातित ध्यान जो निरंजन निराकार निष्कलंक अमत्ति अरूपी अ. मल अकल अगम्य अवेदी अखेदी अयोगि अलेशी इत्यादि सच्चिदानन्द बुद्धानन्द सदानन्द अनन्त ज्ञानमय अनंत दर्शनमय जो सिद्ध भगवान है उनोंके स्वरूपका ध्यान करना उसे-रूपातित ध्यान कहते है। (२०) अनुयोग च्यार-द्रव्यानुयोग-जिस्मे जीवाजीव चेतन्य जड कर्म लेश्या परिणाम अध्यवसाय कर्मवन्धके हेतु कारण सिद्धि सिद्धअवस्था इत्यादि स्वरूपकों समजाये गये हो उसे द्रव्या नुयोग कहा जाता है जिस्म क्षेत्र पर्वत पाहड नदी द्रह देवलोक नारकी चन्द्र सूर्य ग्रह इत्यादि गीणत विषय हो उसे गीनतानुयोग कहते है । जिस्मे साधु श्रावकके क्रिया कल्प कायदा आचार व्यवहार विनय भाषा व्यावञ्चादिक व्याख्यान हो उसे चरण करणानुयोग कहते है जिस्के अन्दर राजा महाराजा शेठ सेनापतियोंके शुभ चारित्र हो जिस्मे धर्म देशना वैराग्यमय उपदेश हो संसारकी असारता वतलाइ हो उसे धर्मकथानुयोग कहते है इति । (२१) जागरणा तीन प्रकारको है । बुद्ध जागरणा तीर्थकरोको केवलीयोंकी अबुद्ध जागरण-छदमस्थमुनियोंकी सुदुःख जा. गरण श्रावकोंकी। . ( २२ ) व्याख्या-उपचारनयसे एक वस्तु में एक गुणकों मौख्यकर व्याख्यान करना जिस्का नौ भेद है।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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