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________________ द्रव्यक्षेत्रकालभाव. ( १७३ ) अन्त रहात भावसे ज्ञानदर्शन चारित्र संयुक्त इत्यादि सब पदा. पर द्रव्यक्षेत्र काल भाव लगा लेना. इन च्यारोंमे सर्व स्तोक काल है उनसे क्षेत्र असंख्यात गुणा है कारण एक सूचीके निचे जितने आकाश आये है उनको एकेक समय में एकेक आकाशप्रदेश निकाले तो असंख्यात सर्पिणी उत्सर्पिणी व्यतित हो जावे. उनसे द्रव्य अनंत गुणे है कारण एकेक आकाश प्रदेशपर अनंते अनन्ते द्रव्य है उनोंसे भाव अनंत गुणे है कारण एकेक द्रव्य में पर्याय अनंत गुणी है । जेसे कोइ मनुष्य अपने घरसे मन्दिरजी आया जिस्मे सर्व स्तोक काल स्पर्श कीया है उनोंसे क्षेत्र स्पर्श असं. ख्यात गुणे कीया उनोंसे द्रव्यस्पर्श अनंत गुणे कीया उनोंसे भाव स्पर्श अनंतगुण कीया । भावना उपर लिखी माफीक समझना। (५) द्रव्य-भाव-द्रव्य हे सों भावकों प्रगट करने में सहायता भूत है. द्रव्य जीव अमर सास्वता है भावसे जीव असा. स्वता है. द्रव्यसे लोक सास्वता है भावसे लोक असास्वता है द्रव्यसे नारकी सास्वती. भावसे असास्वती. अर्थात् द्रव्य है सो मूल वस्तु है वह सदैव सास्वती है भाव वस्तुकि पर्याय है वह असास्वती है जेसे कीसी भ्रमर ने एक काष्टको कोरा उसमें स्व. भावसे । क) का आकार बन गया वह (क) भ्रमरके लिये द्रव्य ( क ) है और उनी ( क ) को कीसी पंडित देख उन (क) कि पर्याय को पेच्छान के कहा कि वह क ) है भ्रमर के लिये वह द्रव्य ' क ) है ओर उन पंडित के लिये भाव (क) है। ६ कारण कार्य-कारण है सो कार्य को प्रगट करनेवाला है विगर कारण कार्य बन नही सक्ता है। जेसे कुंभकार घट बनाना चाहे तो दंड चक्रादि को सहायता अवश्य होना चाहिये जेसे किसी साहुकार को रत्नद्विप जाना है रहस्तामे समुद्र आ गया
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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