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________________ निक्षेपाधिकार. ( १७१ ) नमस्कार कर शुभे महाभारत, दोपहरकों रामायण सुने उसे लौकीक भावाश्यक कहते है. लोकोत्तर भावावश्यक जेसे साधु साध्वि श्रावक श्राविकाओ तहमन्ने तहचित्ते तहलेश्या तहअध्यवसाय उपयोग संयुक्त आवश्यक दोनोंवख्त प्रतिक्रमणादि नित्य कर्म करे उसे लोकोतर भावावश्यक कहते है । कुप्रवचन भावावश्यक जेसे चकचीरीयां चर्मखंडा दंडधारा फलाहारा तपसादि प्रातः समय स्नान मज्जन कर गोपीचन्दन के तीलक कर अपने माने हुवे नाग यक्ष भूतादि के देवालय में भावसहित उकार शब्दादिसे देव स्तुति कर भोजन करे उसे कुप्रवचन भावावश्यक कहते है इति भावनिक्षेप | कसी प्रकार के पदार्थ का स्वरूप जानना हो उनोंको पहले च्यारों निक्षेपाओका ज्ञान हांसल करना चाहिये । जैसे अरिहन्तोंके च्यार निक्षेपे - नाम अरिहन्त सो नाम निक्षेपा-स्थापन अरिहन्त - अरिहन्तोंकि मूर्ति द्रव्यारिहंत तीर्थकर नाम गौत्र बन्धा उन समय से केवलज्ञान न हो वहां तक - भाव अरिहन्त समवसरण में विराजमान हो। इसी माफीक जीवपर च्यार निक्षेपा - नाम जीव सो नाम निक्षेपा, स्थापना जीव-जीवकि मूर्ति याने नरककी स्थापना एवं तीर्थच मनुष्य- देव तथा सिद्धोंके जीव हो तो सिद्धोंकि मूर्ति तथा सिद्ध एसा अक्षर लिखना, जीव-जीवपणाका उपयोग शुन्य तथा सिद्धोंका जीव हो तों जहांतक चौदवां गुण स्थान वृत्ति जीव हो वह द्रव्य सिद्ध है । भाव जीव जीवपणाका ज्ञान हो उसे भाव जीव कहते है द्रव्य - इसी माफीक अजीव पदार्थोंपर भी च्यार प्यार निक्षेप लगालेना जैसे नाम धर्मास्तिकाय सो नाम निक्षेपा है धर्मास्ति
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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