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________________ (१६८) शीघबोध भाग ३ जो. पर्द सिक्खित-पद पदार्थ अच्छी तरफसे पढा हो. ठित-वाचनादि स्वाध्यायमें स्थिर कीया हुवा हो. जितं--पढा हुवा ज्ञानको मूलना नही. सारणा वारणा धारणासे अस्खलित. मितं-पद अक्षर बराबर याद रखना परिजितं-क्रमोत्क्रम याद रखना. नामसमं-पढा हुवा ज्ञान को स्व नामवत् याद रखना. घोस समं-उदात्त अनुदात्त स्वर व्यञ्जन संयुक. अहीण अक्खरं-अक्षर पद हीनता रहीत हो. अणाञ्चअक्खरं-अक्षर पद अधिक भी न बोले. अव्वाद्ध अक्खरं-उलट पुलट अक्षर रहित. अक्खलियं-अखिलत पणसे बोलना. अमिलिय अक्खरं-विरामादि संयुक्त बोलना. अवञ्चामेलियं-पुनरूक्ती आदि दोषरहित बोलना. पडि पुन्नं-अष्टस्थानोच्चारणसंयुक्त. कंठोट्ठविपमुक्कं-बालक की माफीक अस्पष्टता न बोले। गुरुवायणोवगयं-गुरु मुखसे वाचना ली हो उस माफीक सेणं तत्थ वायणाए-सूत्रार्थ की याचना करना. पुच्छणाए-शंका होनेपर प्रश्न का पुच्छना परिअठ्ठणाए-पढा हुवा ज्ञानकि आवृत्ति करना. धम्मकाहाए-उच्चस्थर से धर्मकथाका कहना. इतनि शुद्धताके साथ आवश्यक करनेवाला होनेपर भी "नोअणुपेहाए" नीस लिखने पढने वाचने के अन्दर जीनोंका अनुप्रेक्षा (उपयोग) नही है उन सबको द्रव्य निक्षेपा में माना
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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