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________________ निक्षेपाधिकार. ( १६५ ) जरूरत है ? निक्षपाद्वारे वस्तुका स्वरूपकों जानना यह सामान्य पक्ष है और नयद्वारा जानना यह विशेष पक्ष है। कारण नय है सो भी निक्षेपक अपेक्षा रखते है, नयकि अपेक्षा निक्षेपा स्थूल है और निक्षेपक अपेक्षा नय सूक्षम है अन्यापेक्षा निक्षेपे हे सो प्रत्यक्ष ज्ञान है और नय हे सो परोक्ष ज्ञान है इस वास्ते वस्तुतत्व ग्रहण करनेके अन्दर निक्षेप ज्ञानकि परमावश्यक्ता है. नि. क्षेपोंके मूल भेद च्यार है यथा- - नाम निक्षेप, स्थापनानिक्षेप, द्रव्यनिक्षेप और भावनिक्षेप । - ( १ ) नामनिक्षेपा - जेसे जीव अजीव वस्तुका अमुक नाम रख दीया फीर उसी नाम से बोलानेपर उन वस्तुका ज्ञान हो उन नाम निक्षेपाका तीन भेद है. (१) यथार्थ नाम, (२) अयथार्थ नाम, (३) और अर्थशुन्य नाम जिस्मे । यथार्थनाम - जेसे जीवका नाम जीव, आत्मा, हंस, परमात्मा, सच्चिदानंद, आनन्दघन, सदानन्द, पूर्णानन्द, निज्ञानन्द, ज्ञानानन्द, ब्रह्म, शाश्वत, सिद्ध, अक्षय, अमूर्त्ति इत्यादि. अयथार्थनाम- जीवका नाम हेमो, पेर्मो, मूलो, मोती, माणक, लाल, चन्द्र, सूर्य, शार्दुलसिंह, पृथ्वीपति, नागचन्द्र इत्यादि. अर्थशून्यनाम - जेसे हांसी, खांसी, छींक, उभासी, मृदंग, ताल, सतार आदि ४९ जातिके वार्जित्र यह सर्व अर्थशून्य नाम है इनसे अर्थ कुच्छ भी नही निकलते है । इति नामनिक्षेप. ( २ ) स्थापना निक्षेपका- जीव अनीष कीसी प्रकार के पदार्थकि स्थापना करना उसे स्थापना निक्षेपा कहते है. जिस्के दो भेद है ( १ ) सद्भाव स्थापना ( २ ) असद्भाव स्थापना जिसमे सद्भाव स्थापनाके अनेक भेद है जेसे अरिहन्तोका नाम
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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