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________________ (१६०) शीघ्रबोध भाग ३ जो. वि-मागध देशमे नगर बहुत है तुम कोनसा नगरमे रहते है? सा-में पाडलीपुर नगरमें निवास करता हुं. वि०-पाडलीपुरमें तो पाडा ( मोहला ) बहुत है तुम० सा०-में देवदत्त ब्राह्मणके पाडामें रहता हु । वि०-वहां तो घर बहुत है तुम कहां रहते हो। सा-में मेरे घरमें रहता हूं-यहांतक नैगम नय है। . संग्रहनयवाला बोलाके घरतों बहुत वडा है एसे कहों कि में मेरे संस्ताराके अन्दर रहता हुँ । व्यवहारनय वाला बोलाकि संस्तारा बहुत बढा है एसे कहो कि में मेरे शरीर में रहता हु. रूजुसूत्रवाला बोलाकी शरीर में हाड, मांस, रौद्र, चरबी बहुत है एसा कहो कि मे मेरे परिणाम वृतिमें रहता हु। शब्दनयवाला बोलाकी परिणाम प्रणमन है उनमें सूक्षमबादर जीवोंके शरीर आदि अवग्गहा है वास्ते एसा कहो कि में मेरे गुणोंमे रहता हु। संभिरूढनयवाला बोला कि में मेरा ज्ञानदर्शन के अन्दर रहताहु। एवंभूतनयवाला बोला की मे मेरे अध्यात्म सत्तामें रमणता करता हु। इसी माकीक पायलीका दृष्टान्त जेसे कोइ सुत्रधार हाथमें कुल्हाडा ले पायलीके लिये जंगलमें काष्ट लेनेकों जा रहाथा इत. नेमें विशेष नैगमनय वाला बोलाकि भाइ साहिब आप कहां जाते हो जब सामान्य नैगमनयवाला बोला कि में पायली लेनेकों जाताहु. काष्ट काटते समय पुच्छने पर भी कहा कि में पायली काटता हु। घरपर काष्ट लेके आया उन समय पुच्छनेपर भी कहा कि में पायली लाया हुं यह नैगमनयका वचन है संग्रहनय सामग्री तैयार करनेसे सत्तारुप पायली मानी। व्यवहारनय
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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