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________________ (१४८) शीघबोध भाग २ जो. हानेसे पाप लागे। मृषाबाद बोलनेसे क्रिया लागे। चोरी कर्म कर नेसे क्रिया लागे । खराब अध्यवसायसे० मित्रद्रोहीपणा करनेसे । मानसे, मायासे, लोभसे, इर्यापथिकी क्रिया. ( सूत्रकृतांग सूत्र ). हे भगवान् कोइ श्रावक सामायिक कर बेठा है उनकों क्रिया क्या संपराय कि लगती है या इर्यावहि कि १ उन श्राप ककों संपराय की क्रिया लगती है किन्तु इर्यापथिकी क्रिया नहा लागे! कारण सामायिक बेठे हुवे श्रावककी आत्मा अधिकरण है यहां अधिकरण दो प्रकारके होते है द्रव्याधिकरण हलशकटादि सोंतों सामायिकके समय श्रावक के पास है नही ओर दुसरा भावाधिकरण जो क्रोध, मान, माया, लोभ. यह आत्म प्रदेशोंमें रहा हुवा है इस वास्ते श्रावकके इर्यावहि क्रिया नही लागे किन्तु संपराय क्रिया लगती है। वृहत्कल्पसूत्र उदेश १ अधिकरण नाम क्रोधका है. वृहत्कल्पसूत्र उदेश ३ अधिकरण नाम क्रोधका है. व्यवहारसूत्र उदेश ४ अधिकरण नाम क्रोधका है. निशिथसूत्र उदेश १३ वा अधिकरण नाम क्रोधका है. भगवतिसूत्र शतक १६उ०१ आहारीक शरीरवाले मुनियोंकी कायाकों भी अधीकरण कहा है. कीतनेक अज्ञलोग कहते है कि श्रावकको खानपान आदिसे साता उपजानेसे शखकों तीक्षण करने जेसा पाप लगता है लेकीन यह उन लोगोंको मूर्खता है कारण श्रावकों को शास्त्रमें पात्र कहा है अम्बड श्रावक छठ छठ पारणा करता था वह एक दिन के पारणाम सो सो घर पारणा करता था ( उत्पातिकसूत्र ) पडिमाधारी श्रावक गौचरी कर भिक्षा लाते है (दशाश्रुत स्कन्ध
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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