SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४४ ) शीघ्रबोध भाग २ जो. जीवा जो धनुष्यके अग्र भागमें सुतकी डारी, साका श्रृंग जो धनुष्य के अधोभागमें रखा जाता है. पाणच, चर्म, बाण भालोडी फूदा इन उपकरणोंके जीव जीस गतिमें है उनों सas पांच पांच किया लगती है । कोइ जोव मृग मारनेकों ET तैयार कीया कांन तक खीचके बाण फेंकने कि तैयारी में था इतनेमें दुसरा मनुष्य आके उनका शिरच्छेद किया जीस्के जरिये वह बाण हाथ से छुटा जीनसे मृग मर गया तो कोनसा जीवके पापसे कोन स्पर्श हुवा ? मृग मारनेके परिणामवालोकों मृगका पाप लगा और मनुष्य मारनेवालेके परिणामवालाकों मनुष्यका पाप लगा । एक मनुष्य बांणसे पाक्षी मारनेका विचारमे था. उन बा णसे पाक्षीको मारा पाक्षी निचे गिरता हुवा उनके शरीर से दुसरा जीव मर गया. तो पानी मारनेवाला मनुष्यकों पाक्षीकी पांच क्रिया और दुसरे जीवकि प्यार क्रिया लागे पाक्षीका दुसरा जीवकी पांचो क्रिया लागे । अग्नि - कीसी दुष्टने अनि लगाइ और कीस सुज्ञने अनि बुजाइ जिसमे अग्नि लगानेवालेकों महाश्रव महाकर्म महाक्रिया महावेदना है और अग्नि बुजानेवालेको स्वल्पाश्रव स्वल्पकर्म स्वल्पक्रिया, स्वल्प वेदना है कारण अग्नि लगानेवालेका परिणाम दुष्ट ओर बुजानेवालेका परिणाम विशुद्ध था । अनि जलाने के इरादे से काष्ट कचरा एकत्र किया तथा मृगमारनेकों बाण तैयार कीया मच्छी पकडनेको जाल तैयार करी वर्षादा जानने कों हाथ बाहार निकाला उन सबकों पांच पांच क्रिया लगति है कारण अपना परिणाम खराब होने से ३ क्रिया देख के दुसरे जीवोंकों तकलीफ होना ४ क्रिया इनोंसे जीव मरनेकी भावना होने से पांचो क्रिया लगति है। I
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy