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________________ ( १३६ ) शीघ्रबोध भाग २ जो. जीव ज्ञानावर्णिय कर्म बान्धे तो कितनी क्रिया लागे ?. स्वात् तीन क्रिया स्यात् व्यार क्रिया स्यात् पांच क्रिया लागे. कारण दुसरोंके लिये अशुभयोग होनेसे तीन क्रिया लगती है दुसरोंकों तकलीफ होने से प्यार क्रिया लगती हैं अगर जीवोंकि घात होतों पांचों किया लगती है. जब जीव ज्ञानावर्णिय कर्म बान्ध समय पुद्गलोंकों ग्रहन करते है उनी पुद्गल ग्रहन समय जीवोंकों तकलीफ होती है जीनसे किया लगती है । इसी माफीक नरकादि चौवीस दंडक एक वचनापेक्षा स्यात् ३-४५ क्रिया लागे एवं बहुवचनापेक्षा. परन्तु वहां स्यात् नही कहना कारण जब बहुत है इसी वास्ते बहुतसी तीन क्रिया, बहुतसी चार क्रिया बहुतसी पांच क्रिया. समुच्चय जीव और चौबीस दंडक एक वचन । और समुच्चय जीव और चौवीस दंडक बहुवचन ५० सूत्र हुवे जेसे ज्ञानावर्णिय कर्मके पचास सूत्र कहा इसी माफीक दर्शनावर्णिय, वेदनिय मोहनिय, आयुष्य नाम, गौत्र और अंतराय एवं आठों कर्मों के पचास पचास सूत्र होनेसे ४०० भांगा होते है । , एक जीवने एक जीवकि कीतनी क्रिया लागे ? समुच्चय एक जीवने एक जीवकी स्यात् तीन क्रिया, स्यात् च्यार किया. स्यात् पांच किया लागे स्यात् अक्रिय. कारण समुचय जीवमें सिद्ध भगवान्भी सामेल है । एवं घणा जीवोंकि स्यात् ३-४-५-० एवं घणा जीवोंकों एक जीवकी स्यात् ३-४-९-० एवं घणा जी - वने घणा जीवोंकी परन्तु घणी तीन क्रिया घणी व्यार क्रिया घणी पांच क्रिया घणी अक्रिया. एवं एक जीवकों नारकी के जीवकी कीतनी क्रिया लागे ? स्यात् तीन क्रिया. स्यात् च्यार क्रिया. स्यात् अक्रिया. कारण नारकी नोपक्रम होने से मारा हुषा नही मरते इस वास्ते पांचवी क्रिया नही लागे. एवं एक जीवने घणे
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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