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________________ ( १२६) शीघबोध भाग २ जो. फीकर चिंता शोकका करना, आशुपातका करना, आनन्द शब्द करना रोना, छाती मस्तक पीटना विलापातका करना. रौद्रध्यानके च्यार पाये. जीवहिंस्या कर खुशीमनाना, जूठ बोल खुशीमनाना, चौरी कर कुशीमनाना, दुसरोको कारागृहमें डलाके हर्ष मानना. एवं रौद्रध्यान के च्यार लक्षण है. स्वल्प अपराधका बहुत गुस्सा द्वेष रखना, ज्यादा अपराधका अत्यन्त द्वेष रखना, अज्ञानतासे द्वेष रखना, जाव जीवतक द्वेष रखना. इन प्ररिणामवालोंको रौद्रध्यान कहते है। धर्मध्यानके च्यार पाये. वीतरागकि आज्ञाका चितवन करना, कर्म आने के स्थानोंको विचारना, कर्मों के शुभाशुभ विपाकका विचार करना, लोकका संस्थान चितवन करना, धर्मध्यान के च्यार लक्षण इस मुजब है आज्ञारूची याने वीतरागके आज्ञा का पालन करनेकी रूची, निःसर्गरूची याने जातिस्मरणादिज्ञान से धर्मध्यानकि रूची होना, उपदेशरूची याने गुरंवादिके उपदेश श्रवण करनेकि रूची हो. सूत्ररुची-सूत्र सिद्धान्त श्रवण कर मनन करनेकी रूची यह धर्मध्यानके च्यार लक्षण है। धर्मध्यानके च्यार अवलम्बन है. सूत्रोंकि वाचना, पृच्छना, परावर्तना और धर्मकथा कहेना. धर्मध्यानके च्यार अनुपेक्षा है. संसारको अनि. त्य समझना, संसारमे कीसी सरणा नही है सुखदुःख अपने आप ही को भोगवना पडेगा, यह जीव एकेला आया है ओर अकेला ही जावेंगा. एकत्वपणा चिंतवे. हे चैतन्य! तुं इस संसारमें एकेक जीवोंसे कीतनी कीतनीवार संबन्ध कीया है इस संबन्धी. योंमें तेरा कोन है, तुं कीसका है, कीसके लिये तुं ममत्वभाव करता है आखीर सब संबन्धीयोंओ छोडके एकलेको ही जाना पडेगा।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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