SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११७ ) इनके सिवाय पेडागोचरी अदपेडागोचरी संखावृतन गोचरी चक्रवाल गोचरी गाउगोचरी पतंगीया गोचरी इत्यादि अनेक प्रकारके अभिग्रह कर सकते है यह सब भिक्षाचरीके ही भेद है। नवतत्त्व. ( ४ ) रस परित्यागतपके अनेक भेद है सरसाहारका त्याग, frat करे, आंबिल करे ओसामण से एक सीतले, अरस आहार ले विरस आहार ले, लुख आहार ले, तुच्छ आहार ले, अन्ताहार ले, पांताहार ले, बचा हुवा आहार ले, कोइ रांक भिक्षु, काग कुते भी नही वांच्छे एस फासूक आहार ले अपनि संयमयात्राका निर्वाहा करे. (५) कायक्लेशतप - काष्टकि माफीक खडा रहे. ओकडू आसन करे, पद्मासन करे, वीरासन निषेद्यासन दंडासन लगडासन, आम्रखुजासन, गोदुआसन, पीलांकासन, अधोशिरासन, सिंहासन, कोचासन, उष्णकालमें आतापना ले, शीतकालमें वदूर रख ध्यान करे. थुक थुके नही खाज खीणे नही मैल उत्तारे नही, शरीरकी विभूषा करे नही और मस्तकका लोच करे इत्यादि. ( ६ ) पडिसलीणतातपके च्यार भेद ( १ ) कषाय पडिसलेणता याने नयाकषाय करे नही उदय आयेकों उपशान्त करे जिसके च्यार भेद क्रोध मान माया लोभ |४| (२) इन्द्रिय पडिसलेणता, इन्द्रियोंके विषय विकारमें जातेकों रोके उदय आये विषय विकारकों उपशान्त करे जिसके पांच भेद है श्रोत्रेन्द्रिय चक्षु इन्द्रिय, त्राणेन्द्रिय, रसेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय ( ३ ) योगपडिसलिणता । अशुभ भागोके व्यापारको रोके और शुभ योगों के व्यापार में प्रवृति करे जिसके तीन भेद है, मनयोग, वचन
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy