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________________ (६६) शीघ्रबोध भाग १ लो. कारण प्रभु अवधिज्ञान संयुक्त थे वह जानते थे कि अब कल्पवृक्ष तो फल देंगे नहीं और नीति न होगी तो भविष्य में बड़ा भारी नुकशान होगा दुराचार बढ जायगें इस वास्ते भगवान ने उन मनुष्यों को असी मसी कसी आदि कर्म करना बतलाके नीतिके अन्दर स्थापन कीया । बस यहां से युगलधर्म का बिलकुल लोप होगया अब नितिके साथ लग्न करना अन्नादि खाद्य पदार्थ पेदा करना और भगवान् आदीश्वर के आदेश माफीक परताव करना वह लोग अपना कर्तव्य समजने लग गये. भगवान् एसे वीस लक्ष पुर्व कुमार पद में,रहै इन्द्र महाराज मीलके भगवान् का राज्याभिषेक कीया भगवान् इक्ष्वाकुवंस उग्रादिकुल स्थापन कर उनोंके साथ ६३ लक्षपूर्व राजपद कों चलाये अर्थात् ८३ लक्षपूर्व गृहवास सेवन किया जीस्में भरत वाहुबल आदि. १०० पुत्र तथा ब्राह्मी, सुन्दरी आदि दो पुत्रोये हुए यी अयोध्या नगरी कि स्थापना पहलेसे इन्द्र महाराजने करी थी और भी ग्राम नगर पुर पाटण आदि से भूमंडल बडाही शोभने लग रहाथा. भगवानके दीक्षाके समय नौलाकान्तिक देव आके भगवान से अर्ज करी कि हे प्रभो!जेसे आप नितीधर्म बतलाके क्लेश पाते युगलीयोंका उद्धार किया है इसी माफीक अब आप दीक्षा धारण कर भव्य जीवोंका संसार से उद्धार कर मोक्षमार्ग को प्रचलीत करो. उनसमय भगवान् संवत्सर दान दे के भरतकों अयोध्याका राज बाहुबलकों तक्षशीला का राज ओर ९८ भाइयोंकों अन्यदेशोंका राज दे ४००० राजपुत्रोंके साथ दीक्षा ग्रहन करी । भगवान् के एक वर्ष तक का अन्तराय कर्म था और युगल मनुष्य अज्ञात होनेसे एक वर्ष तक आहार पाणी न मीलने से वह ४००० शिष्य जंगलमे जाके फलफूल भक्षण करने लग गये. जब भगवान् ने वरसीतपका पारणा श्रेयांसकुमार के वहां
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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