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________________ 305 सप्तमो नर्तनाध्यायः स्थाने विषमसूच्याख्ये स्थित्वोत्प्लुत्य पतन्भुवि / अशी संघट्टयेद्यत्र सोक्ता संघट्टिताभिधा // 993 / / इति संघट्टिता (24) धरण्यां चरणाग्रेण घातः खुत्ता निगद्यते / इति खुत्ता (25) घरणः स्वस्तिकाकारकारितः स्वस्तिका भवेत् // 994 // इति स्वस्तिका (26) यत्राशी संहतस्थाने स्थित्वा तिर्यक्पृथक्कृतौ / स्पृशतो बागपार्धाभ्यां भुवं सा तलदर्शिनी // 995 / / इति तलदर्शिनी (25) (सु०) संघट्टितां लक्षयति-स्थान इति / यत्र विषमसूचीस्थाने स्थित्वा, उत्प्लुत्य भूमौ पतन् पादः संघव्यते ; सा संघट्टिता // 993 // ___ इति संघट्टिता (24) (सु०) खुत्तां लक्षयति-धरण्यामिति / यत्र भूमौ पादामेण ताड्यते ; सा खुत्ता // 993- // ___ इति खुत्ता (25) (सु०) स्वस्तिकां लक्षयति-चरण इति / यत्र चरणः स्वस्तिकाकार गतः, सा स्वस्तिका // -994 // इति स्वस्तिका (26) (सु०) तलदर्शिनी लक्षयति-योति / यत्र पादौ संहतस्थाने स्थित्वा, तिर्यगेव पृथग्गत्वा, बाह्यपार्वाभ्यां भूमि स्पृशत: ; सा तलदर्शिनी // 995 // ___इति तलदर्शिनी (20) 39 Scanned by Gitarth Ganga Research Institute
SR No.034230
Book TitleSangit Ratnakar Part 04 Kalanidhi Sudhakara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarangdev, Kalinatha, Simhabhupala
PublisherAdyar Library
Publication Year1953
Total Pages642
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size277 MB
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