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________________ हस्त प्रकरण किसी वस्तु को उठाने और उत्तम सुन्दरी स्त्रियों के साथ रति केलि आदि करने में प्रिय के द्वारा वस्त्र खींचने का भाव प्रदर्शित करने के लिए खटकामुख हस्त को नीचे ले जाकर ऊपर की ओर उठा देना चाहिए। शीर्षदेशाल्ललाटस्थो वधूनामवगुण्ठने । मन्थस्याकर्षणे योज्यौ दधतौ तौ गतागतौ ॥७७॥ 80 स्त्रियों का चूंघट काढ़ने का भाव प्रदर्शित करने में दोनों खटकामुख हस्तों को शिर के ऊपर रखना चाहिए और मथानी चलाने के आशय में उन्हें आगे-पीछे की ओर संचालित करना चाहिए। ऊर्ध्वगाधोमुखावेतौ बन्धनेऽथांशुकस्य तु । परिधाने नाभिगतावितरेतरसम्मुखौ ॥७८॥ 81 मलमल या रेशमी वस्त्र बांधने के भाव में खटकामुख हस्तों को क्रमशः ऊर्ध्वमुख और अधोमुख करना चाहिए। यदि वस्त्र पहनने का भाव दर्शित करना हो तो उन्हें नाभि के निकट आमने-सामने अवस्थित कर देना चाहिए। इमौ विच्युतसन्दशौ निराशे समुदाहृतौ । . पेषणे कुङकुमादेस्तु कार्यावेतावधस्तलौ । निराशा का भाव दिखाने के लिए उन्हें सँड़सी की तरह खोल कर लटका देना चाहिए। यदि केसर आदि के पीसने का आशय प्रकट करना हो तो उन्हें निम्न स्थान पर ले जाना चाहिए। यथासम्भवमेतस्मिन्कर्माण्यूह्यानि पण्डितैः ॥७॥ उक्त विनियोगों के अतिरिक्त नृत्याचार्यों ने खटकामुख हस्त के अन्य भी प्रयोग बताये हैं। उनका भी आवश्यकतानुसार उपयोग करना चाहिए। १४. सूचीमुख हस्त और उसका विनियोग ऊर्ध्वप्रसारिता चेत्स्यात् खटकास्यस्य तर्जनी । तदा सूचीमुखः प्रोक्तोऽशोकमल्लेन भूभुजा ॥५०॥ यदि खटकामुख हस्त मुद्रा की तर्जनी को ऊपर की ओर सीधे फैला दिया था तान दिया जाय तो नृपति अशोकमल के मतानुसार उसे सूचीमुख हस्त कहते हैं। तर्जन्यस्य भ्रमन्त्यूर्ध्वमुखा चक्रायुधे मता । घटोपकरणे. चक्रे भ्रमन्ती स्यादधोमुखी ॥१॥ 82
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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