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________________ नृत्याध्यायः जिस वायु को चिरकाल तक धीरे-धीरे नासिका द्वारा पिया ( अर्थात् खींचा) जाय, उसे उल्लासित कहा जाता है । सुगन्ध और सन्दिग्ध वस्तु के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ६. निरस्त और उसका विनियोग क्षिप्तः सकृत् सशब्दो यो निरस्तः सोऽभिधीयते । स रोगे दुःखसंयुक्ते श्रान्तेऽप्येष नियुज्यते ॥ ५२४ ॥ 529 जिस वायु को एक ही बार शब्द के साथ छोड़ दिया जाय, वह निरस्त कहलाता है। रोग, दुःख, संतप्त और थके हुए के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ७. स्खलित और उसका विनियोग यो निष्क्रान्तोऽतिदुःखेन स वायुः स्खलिताभिधः । दशायामन्तिमायां स व्याधिस्खलितयोरपि ॥ ५२५ ॥ 530 जो वायु अत्यन्त कष्ट से बाहर निकलता है, उसे स्खलित कहा जाता है । अन्तिम दशा, व्याधि तथा पतन के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ८. प्रसूत और उसका विनियोग मुखाद् यो निर्गतो दीर्घः सशब्दः प्रसृतस्तु सः । प्रसुप्ताभिनये प्रोक्तोऽशोकमल्लेन धीमता ।।५२६॥ 531 जो दीर्घ श्वास शब्द के साथ मुख से निकलता है, वह प्रसूत कहा जाता है। धीमान् अशोकमल्ल ने सोये हुए के अभिनय में उसका विनियोग बताया है । ९. विस्मित और उसका विनियोग स्याच्चित्तस्यान्यप्रसक्तितः । प्रयत्नेन विना स विस्मितोऽद्भुते कार्यश्चिन्ताविस्मययोरपि ॥ ५२७ ॥ 532 अन्यमनस्कावस्था में, बिना प्रयत्न के ( स्वभावतः ) जो वायु मुख से निकलता है वह विस्मित कहा जाता है । आश्चर्य, चिन्ता और विस्मय के अभिनय में उसका विनियोग करना चाहिए । refor वायु के विनियोग १६६ यः दश त्वन्वर्थलक्ष्माणो विज्ञातव्याः समादयः । (श्लोक ५१७ और ५१८ में ) वायु के सम आदि जो दस भेद बताये गये हैं उनके लक्षणों के अनुरूप ही विनियोग भी समझने चाहिएँ ।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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