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________________ प्रधान संपादकीय किंचित् प्रास्ताविक । टीका-टिप्पण आदि लिखने वाले प्रन्थकारों में प्रथम ग्रन्थकार शायद रुय्यक अथवा रुचक नामक पण्डित है और दूसरा विद्वान् प्रस्तुत व्याख्याकर्ता सोमेश्वर भट्ट है। इस सोमेश्वर भट्ट के विषय में सम्पादक विद्वान् श्रीपरीखने अपनी प्रस्तावना में यथायोग्य परिचय देने का प्रयत्न किया है। जिस तरह काव्यप्रकाश मूलग्रन्थ के कर्ता विद्वान् मम्मट काश्मीर के निवासी थे, इसी तरह इस काव्यादर्शनामक संकेत के कर्ता सोमेश्वर भट्ट भी काश्मीर के निवासी थे । श्रीपरीखने संकेतकार के समय के बारे में जो ऊहापोह किया है उस से ज्ञात होता है कि मूलग्रन्थकार मम्मट और संकेतकार सोमेश्वर के बीच में कोई अधिक काल का व्यवधान नहीं है। उन दानों के मध्य में ५० वर्ष से भी कम ही अन्तर रहा होगा। काव्यप्रकाश पर संकेत नाम से रची गई एक अन्य व्याख्या जो आज तक अधिक प्रसिद्ध रही है और जिसका प्रकाशन भी कई स्थानों से हो चुका है, वह संकेतरूप व्याख्या जैन विद्वान् माणिक्यचन्द्ररचित है। अभी तक विद्वानों की यह मान्यता रही है कि काव्यप्रकाश पर सब से प्रथम यही एक विशिष्ट व्याख्या लिखी गई है और अन्य अनेकानेक व्याख्याएं इस के बाद रची गई हैं। पर प्रा० श्रीपरीख ने अपने प्रस्तुत संपादन के प्रास्ताविक में इस विषय का जो ऊहापोह किया है उस से प्रतीत होता है कि जैन विद्वान् माणिक्य- . चन्द्र के संकेत के पूर्व ही, प्रस्तुत सोमेश्वरभट्टकृत संकेत की रचना हुई है । हमारे मत से श्रीपरीख का यह अभिमत युक्तियुक्त प्रतीत होता है । ... माणिक्यचन्द्र ने अपने संकेत में रचनाकाल का स्पष्ट उल्लेख किया है, पर उसका अर्थ निकालने में विद्वानों को कुछ भ्रम हो रहा है, इस लिये उसका समय अपेक्षाकृत ३० या ५० वर्ष जितना प्राचीन माना जा रहा है । डॉ. भोगीलाल सांडेसराने माणिक्यचन्द्र के समय के विषय में जो विचार प्रकट किया है वह हमें अधिक युक्तिसंगत लगता है। माणिक्यचन्द्र का महामात्य वस्तुपाल के सर्वथा समकालीन होना निश्चित है, और उनकी साहित्यिक रचनाएं भी उसी महामात्य के प्रोत्साहनकाल में बनी हैं। अतः हमारे विचार से माणिक्यचन्द्र के सङ्केत का रचना समय, विक्रम संवत् १२१६ नहीं अपि तु १२६६ ही होना चाहिये । वक्त्रशब्द के संकेत से प्रायः १, ४, ६, और १० तक के अङ्क लिये जाने के . कुछ आधार मिलते हैं । इस दृष्टि से प्रस्तुत प्रकाशन में जो संकेतात्मक काव्यप्रकाश की व्याख्या प्रकट हो रही है वह एक प्रकार से काव्यप्रकाश की सर्वप्रथम प्रमाणभूत एवं सुन्दरतम व्याख्या है। __ इस प्रकाशन में काव्यप्रकाश का जो मूल पाठ मुद्रित है. वह भी आज तक मुद्रित अन्यान्य अनेकानेक पाठों की तुलना में, अद्यावधि ज्ञात एवं प्राप्त प्राचीनतम प्रति के आधार
SR No.034218
Book TitleKavya Prakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMammatacharya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1959
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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